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आ॒जुह्वा॑नो न॒ ईड्यो॑ दे॒वाँ आ व॑क्षि य॒ज्ञिया॑न्। अग्ने॑ सहस्र॒सा अ॑सि ॥

English Transliteration

ājuhvāno na īḍyo devām̐ ā vakṣi yajñiyān | agne sahasrasā asi ||

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Pad Path

आ॒ऽजुह्वा॑नः। नः॒। ईड्यः॑। दे॒वान्। आ। व॒क्षि॒। य॒ज्ञिया॑न्। अग्ने॑। स॒ह॒स्र॒ऽसाः। अ॒सि॒ ॥ १.१८८.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:188» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:8» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान विद्वान् ! जिस कारण हम लोगों से जिस प्रकार (आजुह्वानः) होम को प्राप्त (ईड्यः) ढूंढने योग्य (सहस्रसाः) सहस्रों पदार्थों का विभाग करनेवाला अग्नि हो वैसे आमन्त्रण बुलाये को प्राप्त स्तुति प्रशंसा के योग्य सहस्रों पदार्थों को देनेवाले आप (असि) हैं इससे (नः) हमलोगों के (यज्ञियान्) यज्ञ सिद्ध करानेवाले (देवान्) विद्वान् वा दिव्य गुणों को (आ, वक्षि) अच्छे प्रकार प्राप्त कराते हैं ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे गुण, कर्म, स्वभाव से अच्छे प्रकार सेवन किया हुआ अग्नि बहुत कार्यों को सिद्ध करता है, वैसे सेवा किया हुआ आप्त विद्वान् समस्त शुभ गुणों और कार्यसिद्धियों को प्राप्त कराता है ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे अग्नेऽग्निरिव वर्त्तमान यतोऽस्माभिराजुह्वान ईड्यः सहस्रसास्त्वमसि तस्मान्नो यज्ञियान् देवानावक्षि ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (आजुह्वानः) कृतहोमः कृताऽऽमन्त्रणो वा (नः) अस्मान् (ईड्यः) स्तोतुमध्येषितुं योग्यः (देवान्) विदुषो दिव्यान् गुणान् वा (आ) (वक्षि) वहसि प्रापयसि (यज्ञियान्) यज्ञसाधकान् (अग्ने) वह्निरिव वर्त्तमान (सहस्रसाः) यः सहस्राणि पदार्थान् सनोति विभजति सः (असि) ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा गुणकर्मस्वभावतः संसेवितोऽग्निर्बहूनि कार्याणि साध्नोति तथा सेवित आप्तो विद्वान् सर्वान् शुभान् गुणान् कार्यसिद्धीश्च प्रापयति ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. गुण, कर्म, स्वभावाने चांगल्या प्रकारे स्वीकारलेला अग्नी जसे पुष्कळ कार्य करतो, तसे ज्याची सेवा केलेली आहे असा आप्त विद्वान संपूर्ण शुभ गुणांना व कार्यसिद्धीला प्राप्त करवितो. ॥ ३ ॥