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उप॒ त्मन्या॑ वनस्पते॒ पाथो॑ दे॒वेभ्य॑: सृज। अ॒ग्निर्ह॒व्यानि॑ सिष्वदत् ॥

English Transliteration

upa tmanyā vanaspate pātho devebhyaḥ sṛja | agnir havyāni siṣvadat ||

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Pad Path

उप॑। त्मन्या॑। व॒न॒स्प॒ते॒। पाथः॑। दे॒वेभ्यः॑। सृ॒ज॒। अ॒ग्निः। ह॒व्यानि॑। सि॒स्व॒द॒त् ॥ १.१८८.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:188» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:9» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब देनेवाले के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (वनस्पते) वनों के पालनेवाले ! (त्मन्या) अपने बीच उत्तम क्रिया से जैसे (अग्निः) अग्नि (देवेभ्यः) विद्वान् वा दिव्य गुणों के लिये (हव्यानि) भोजन करने योग्य पदार्थों को (सिष्वदत्) स्वादिष्ठ करता है वैसे आप विद्वान् वा दिव्य गुणों के लिये (पाथः) अन्न को (उप, सृज) उनके लिये देओ ॥ १० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो वनादिकों की रक्षा से घास, फूस और ओषधियों को बढ़ाते हैं, वे सबका उपकार करने योग्य होते हैं ॥ १० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ दातृविषयमाह ।

Anvay:

हे वनस्पते त्मन्या तथाऽग्निर्देवेभ्यो हव्यानि सिष्वदत्तथा त्वं देवेभ्य पाथ उपसृज ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (उप) (त्मन्या) आत्मनि साध्व्या क्रियया (वनस्पते) वनानां पालक (पाथः) अन्नम् (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यो दिव्यगुणेभ्यो वा (सृज) (अग्निः) पावकः (हव्यानि) अत्तव्यानि (सिष्वदत्) स्वादूकरोति ॥ १० ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये वनादिरक्षणेन तृणौषधीन् वर्द्धयन्ति ते सर्वोपकारं कर्त्तुं योग्या जायन्ते ॥ १० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे वनांचे रक्षण करून तृण वगैरे तसेच औषधींची वाढ करतात ते सर्वांवर उपकार करणारे असतात. ॥ १० ॥