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समि॑द्धो अ॒द्य रा॑जसि दे॒वो दे॒वैः स॑हस्रजित्। दू॒तो ह॒व्या क॒विर्व॑ह ॥

English Transliteration

samiddho adya rājasi devo devaiḥ sahasrajit | dūto havyā kavir vaha ||

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Pad Path

सम्ऽइ॑द्धः। अ॒द्य। रा॒ज॒सि॒। दे॒वः। दे॒वैः। स॒ह॒स्र॒ऽजि॒त्। दू॒तः। ह॒व्या। क॒विः। व॒ह॒ ॥ १.१८८.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:188» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:8» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब ग्यारह ऋचावाले एकसौ अट्ठासी सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अग्नि के दृष्टान्त से राजगुणों का उपदेश करते हैं।

Word-Meaning: - हे (सहस्रजित्) सहस्रों शत्रुओं को जीतनेवाले राजन् ! (समिद्धः) जलती हुई प्रकाशयुक्त अग्नि के समान प्रकाशमान (देवैः) विजय चाहते हुए वीरों के साथ (देवः) विजय चाहनेवाले और (दूतः) शत्रुओं के चित्तों को सन्ताप देते हुए (कविः) प्रबल प्रज्ञायुक्त आप (अद्य) आज (राजसि) अधिकतर शोभायमान हो रहे हैं सो आप (हव्या) ग्रहण करने योग्य पदार्थों को (वह) प्राप्त कीजिये ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो अग्नि के समान दुष्टों को सब ओर से कष्ट देता, सज्जनों के सङ्ग से शत्रुओं को जीतता, विद्वानों के सङ्ग से बुद्धिमान् होता हुआ प्राप्त होने योग्य वस्तुओं को प्राप्त होता, वह राज्य करने को योग्य है ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाऽग्निदृष्टान्तेन राजगुणानाह ।

Anvay:

हे सहस्रजित् राजन् समिद्धइव देवैः सह देवः सहस्रजिद्दूतः कविस्त्वमद्य राजसि स त्वं हव्या वह ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (समिद्धः) अग्निरिव प्रदीप्तः (अद्य) (राजसि) प्रकाशसे (देवः) जिगीषुः (देवैः) जिगीषुभिर्वीरैस्सह (सहस्रजित्) यः सहस्राणि शत्रून् जयति सः (दूतः) यो दुनोति परितापयति शत्रुस्वान्तानि सः (हव्या) आदातुमर्हाणि (कविः) विक्रान्तप्रज्ञः (वह) प्रापय ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। योऽग्निरिव दुष्टान् परितापयति सज्जनसङ्गेन शत्रून् विजयते विद्वत्सङ्गेन प्राज्ञः सन् प्राप्तुमर्हाणि वस्तूनि प्राप्नोति स राज्यं कर्त्तुमर्हति ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नीच्या दृष्टान्ताने राजा, अध्यापक, उपदेशक, स्त्री-पुरुष, ईश्वर व दाता यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे याच्या अर्थाची मागच्या सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो अग्नीप्रमाणे दुष्टांना सगळीकडून त्रास देतो, सज्जनांच्या संगतीने शत्रूंना जिंकतो, विद्वानांच्या संगतीने बुद्धिमान होतो, प्राप्त करण्यायोग्य वस्तू प्राप्त करतो, तो राज्य करण्यायोग्य असतो. ॥ १ ॥