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स्वादो॑ पितो॒ मधो॑ पितो व॒यं त्वा॑ ववृमहे। अ॒स्माक॑मवि॒ता भ॑व ॥

English Transliteration

svādo pito madho pito vayaṁ tvā vavṛmahe | asmākam avitā bhava ||

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Pad Path

स्वादो॒ इति॑। पितो॒ इति॑। मधो॒ इति॑। पि॒तो॒ इति॑। व॒यम्। त्वा॒। व॒वृ॒म॒हे॒। अ॒स्माक॑म्। अ॒वि॒ता। भ॒व॒ ॥ १.१८७.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:187» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:6» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे परमात्मन् ! आपके रचे (स्वादो) स्वादु (पितो) पीने योग्य जल तथा (मधो) मधुर (पितो) पालना करनेवाले (त्वा) उस अन्न को (वयम्) हम लोग (ववृमहे) स्वीकार करते हैं इससे आप उस अन्नपान के दान से (अस्माकम्) हमारी (अविता) रक्षा करनेवाले (भव) हूजिये ॥ २ ॥
Connotation: - मनुष्यों को मधुरादि रस के योग से स्वादिष्ठ अन्न और व्यञ्जन को आयुर्वेद की रीति से बनाकर सदा भोजन करना चाहिये, जो रोग को नष्ट करने से आयुर्दा बढ़ाने से रक्षा करनेवाला हो ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे परमात्मन् त्वन्निर्मितं स्वादो पितो मधो पितो त्वा वयं ववृमहे। अतस्त्वं तदन्नपानदानेनास्माकमविता भव ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (स्वादो) स्वादु (पितो) पेयम् (मधो) मधुरम् (पितो) पालकमन्नम् (वयम्) (त्वा) तत्। अत्र व्यत्ययः। (ववृमहे) स्वीकुर्महे (अस्माकम्) (अविता) रक्षकः (भव) ॥ २ ॥
Connotation: - मनुष्यैर्मधुरादिरसयोगेन स्वादिष्ठमन्नं व्यञ्जनं चायुर्वेदरीत्या निर्माय सदा भोक्तव्यम्। यद्रोगनाशकत्वेनायुर्वर्द्धनाद्रक्षकं भवेत् ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - माणसांनी नेहमी मधुर रसाच्या योगाने स्वादिष्ट अन्न व व्यंजन आयुर्वेदिक पद्धतीने बनवून भोजन करावे. जे रोग नाहीसे करणारे व आयुष्य वाढवून रक्षण करणारे असावे. ॥ २ ॥