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उ॒र्वी सद्म॑नी बृह॒ती ऋ॒तेन॑ हु॒वे दे॒वाना॒मव॑सा॒ जनि॑त्री। द॒धाते॒ ये अ॒मृतं॑ सु॒प्रती॑के॒ द्यावा॒ रक्ष॑तं पृथिवी नो॒ अभ्वा॑त् ॥

English Transliteration

urvī sadmanī bṛhatī ṛtena huve devānām avasā janitrī | dadhāte ye amṛtaṁ supratīke dyāvā rakṣatam pṛthivī no abhvāt ||

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Pad Path

उ॒र्वी इति॑। सद्म॑नी॒ इति॑। बृ॒ह॒ती इति॑। ऋ॒तेन॑। हु॒वे। दे॒वाना॑म्। अव॑सा। जनि॑त्री॒ इति॑। द॒धाते॑। ये। अ॒मृत॑म्। सु॒प्रती॑के॒ इति॑ सु॒ऽप्रती॑के। द्यावा॑। रक्ष॑तम्। पृ॒थि॒वी॒ इति॑। नः॒। अभ्वा॑त् ॥ १.१८५.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:185» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:3» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे माता-पिताओ ! (ये) जो (उर्वी) बहुत विस्तारवाली (सद्मनी) सबकी निवासस्थान (बृहती) बड़ी (ऋतेन) जल से और (अवसा) रक्षा आदि के साथ (देवानाम्) विद्वानों की (जनित्री) उत्पन्न करनेवाली (सुप्रतीके) सुन्दर प्रतीति का विषय (द्यावा, पृथिवी) आकाश और पृथिवी (अमृतम्) जल को (दधाते) धारण करती हैं और मैं उनकी (हुवे) प्रशंसा करता हूँ वैसे (अभ्वात्) अपराध से (नः) हम लोगों की तुम (रक्षतम्) रक्षा करो ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो माता-पिता सत्योपदेश से सूर्य के समान विद्या प्रकाश से युक्त सर्वगुण सम्भृत पृथिवी जैसे जल से वृक्षों को वैसे शारीरिक बल से बढ़ाते हैं, वे सबकी रक्षा करने को योग्य हैं ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मातापितरौ ये उर्वी सद्मनी बृहती ऋतेनाऽवसा देवानां जनित्री सुप्रतीके द्यावापृथिवी यथामृतं दधातेऽहं हुवे तथाऽभ्वान्नोऽस्मान् युवां रक्षतम् ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (ऊर्वीः) बहुविस्तीर्णे (सद्मनी) सर्वेषां निवासाऽधिकरणे (बृहती) महत्यौ (ऋतेन) जलेन (हुवे) प्रशंसामि (देवानाम्) विदुषाम् (अवसा) रक्षणादिना (जनित्री) उत्पादयित्री (दधाते) (ये) (अमृतम्) जलम्। अमृतमित्युदकना०। निघं० १। १२। (सुप्रतीके) सुष्ठप्रतीतिविषये (द्यावा) (रक्षतम्) (पृथिवी) (नः) (अभ्वात्) ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मातापितरः सत्योपदेशेन सूर्यवद्विद्याप्रकाशयुक्ताः पृथिवीजलेन वृक्षानिव शरीरबलेन वर्द्धयन्ति ते सर्वेषां रक्षां कर्त्तुमर्हन्ति ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे माता-पिता सत्योपदेशाने सूर्याप्रमाणे विद्याप्रकाशयुक्त करतात व पृथ्वी जशी जलाने वृक्षांना वाढविते तसे शारीरिक बलाने वाढवितात ते सर्वांचे रक्षण करणारे असतात. ॥ ६ ॥