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क॒त॒रा पूर्वा॑ कत॒राप॑रा॒योः क॒था जा॒ते क॑वय॒: को वि वे॑द। विश्वं॒ त्मना॑ बिभृतो॒ यद्ध॒ नाम॒ वि व॑र्तेते॒ अह॑नी च॒क्रिये॑व ॥

English Transliteration

katarā pūrvā katarāparāyoḥ kathā jāte kavayaḥ ko vi veda | viśvaṁ tmanā bibhṛto yad dha nāma vi vartete ahanī cakriyeva ||

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Pad Path

क॒त॒रा। पूर्वा॑। क॒त॒रा। अप॑रा। अ॒योः। क॒था। जा॒ते इति॑। क॒व॒यः॒। कः। वि। वे॒द॒। विश्व॑म्। त्मना॑। बि॒भृ॒तः॒। यत्। ह॒। नाम॑। वि। व॒र्ते॒ते॒। अह॑नी॒ इति॑। च॒क्रिया॑ऽइव ॥ १.१८५.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:185» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:2» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एकसौ पचासी सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र से उत्पन्न होने योग्य और उत्पन्न करनेवाले के गुणों का वर्णन करते हैं ।

Word-Meaning: - हे (कवयः) विद्वान् पुरुषो ! (अयोः) द्यावापृथिवी में वा कार्य-कारणों में (कतरा) कौन (पूर्वा) पूर्व (कतरा) कौन (अपरा) पीछे है ये द्यावापृथिवी वा संसार के कारण और कार्यरूप पदार्थ (कथा) कैसे (जाते) उत्पन्न हुए इस विषय को (कः) कौन (वि, वेद) विविध प्रकार से जानता है, (त्मना) आप प्रत्येक (यत्) जो (ह) निश्चित (विश्वम्) समस्त जगत् (नाम्) प्रसिद्ध है उसको (बिभृतः) धारण करते वा पुष्ट करते हैं और वे (अहनी) दिन-रात्रि (चक्रियेव) चाक के समान घूमते वैसे (वि वर्त्तेते) विविध प्रकार से वर्त्तमान हैं ॥ १ ॥
Connotation: - हे विद्वानो ! जो इस जगत् में द्यावापृथिवी और जो प्रथम कारण और परकार्य्यरूप पदार्थ हैं तथा जो आधाराधेय सम्बन्ध से दिन-रात्रि के समान वर्त्तमान हैं, उन सबको तुम जानो ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ जन्यजनककर्माण्याह ।

Anvay:

हे कवयोऽयोः कतरा पूर्वा कतराऽपरा इमे कथा जाते एतत् को वि वेद। त्मना यद्ध विश्वं नामाऽस्ति तद्बिभृतस्ते अहनी चक्रियेव वि वर्त्तेते तौ गुणस्वभावौ विजानीहि ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (कतरा) द्वयोर्द्वयोर्मध्ये कतरौ (पूर्वा) पूर्वौ (कतरा) कतरौ (अपरा) अपरौ (अयोः) अनयोर्द्यावापृथिव्योः कार्यकारणयोर्वा अत्र छान्दसो वर्णलोपः। (कथा) कथम् (जाते) उत्पन्ने (कवयः) विद्वांसः (कः) (वि) (वेद) जानाति (विश्वम्) सर्वम् (त्मना) आत्मना (बिभृतः) धरतः (यत्) ये (ह) किल (नाम) जलम् (वि) (वर्त्तेते) (अहनी) अहर्निशम् (चक्रियेव) यथा चक्रे भवः पदार्थः ॥ १ ॥
Connotation: - हे विद्वांसा येऽस्मिञ्जगति द्यावापृथिव्यौ ये च पूर्वाः कारणाख्याः पराः कार्य्याख्याः पदार्थाः सन्ति। ये आधाराधेयसम्बन्धेनाहोरात्रवद्वर्त्तन्ते तान् यूयं विजानीत । अयं मन्त्रः निरुक्ते व्याख्यातः । निरु० ३। २२। ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात द्यावा पृथ्वीच्या दृष्टान्ताने उत्पन्न होण्यायोग्य व उत्पादक कर्मांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे. हे जाणले पाहिजे.

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - हे विद्वानांनो! जे या जगात द्यावा पृथ्वी व प्रथम कारण व परकार्यरूपी पदार्थ आहेत व जे आधार आधेय संबंधाने दिवस-रात्रीप्रमाणे वर्तमान आहेत, त्या सर्वांना तुम्ही जाणा. ॥ १ ॥