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अ॒स्मे सा वां॑ माध्वी रा॒तिर॑स्तु॒ स्तोमं॑ हिनोतं मा॒न्यस्य॑ का॒रोः। अनु॒ यद्वां॑ श्रव॒स्या॑ सुदानू सु॒वीर्या॑य चर्ष॒णयो॒ मद॑न्ति ॥

English Transliteration

asme sā vām mādhvī rātir astu stomaṁ hinotam mānyasya kāroḥ | anu yad vāṁ śravasyā sudānū suvīryāya carṣaṇayo madanti ||

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Pad Path

अ॒स्मे इति॑। सा। वा॒म्। मा॒ध्वी॒ इति॑। रा॒तिः। अ॒स्तु॒। स्तोम॑म्। हि॒नो॒त॒म्। मा॒न्यस्य॑। का॒रोः। अनु॑। यत्। वा॒म्। श्र॒व॒स्या॑। सु॒दा॒नू॒ इति॑ सुऽदानू। सु॒ऽवीर्या॑य। च॒र्ष॒णयः॑। मद॑न्ति ॥ १.१८४.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:184» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:1» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब सज्जनता का आश्रय लिये हुए अध्यापक और उपदेशक विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (सूदानू) अच्छे देनेवाले ! जो (वाम्) तुम दोनों की (माध्वी) मधुरादि गुणयुक्त (रातिः) देनि वर्त्तमान है (सा) वह (अस्मे) हम लोगों के लिये (अस्तु) हो। और तुम (मान्यस्य) प्रशंसा के योग्य (कारोः) कार करनेवाले की (स्तोमम्) प्रशंसा को (हिनोतम्) प्राप्त होओ और (श्रवस्या) अपने को सुनने की इच्छा से (यत्) जिन (वाम्) तुमको (सुवीर्य्याय) उत्तम पराक्रम के लिये (चर्षणयः) साधारण मनुष्य (अनु, मदन्ति) अनुमोदन देते हैं तुम्हारी कामना करते हैं, उनको हम भी अनुमोदन देवें ॥ ४ ॥
Connotation: - जो आप्त श्रेष्ठ सद्धर्मी सज्जनों की नीति और विद्वानों की स्तुति मनोहर हो, वह उत्तम पराक्रम के लिये समर्थ होती है ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ सज्जनताश्रयमध्यापकोपदेशकविषयमाह ।

Anvay:

हे सुदानू ! या वां माध्वी रातिर्वर्त्तते साऽस्मे अस्तु युवां मान्यस्य कारोः स्तोमं हिनोतं यद्यौ श्रवस्या वां सुवीर्य्याय चर्षणयोऽनु मदन्ति तौ वयमप्यनु मदेम ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (अस्मे) अस्मभ्यम् (सा) श्रीः (वाम्) युवयोः (माध्वी) मधुरादिगुणयुक्ता (रातिः) दानम् (अस्तु) भवतु (स्तोमम्) श्लाघ्यम् (हिनोतम्) प्राप्नुतम् (मान्यस्य) प्रशंसितुं योग्यस्य (कारोः) कारकस्य (अनु) आनुकूल्ये (यत्) (वाम्) युवाम् (श्रवस्या) आत्मनः श्रव श्रवणमिच्छया (सुदानू) सुष्ठुदातारौ (सुवीर्य्याय) उत्तमपराक्रमाय (चर्षणयः) मनुष्याः (वदन्ति) कामयन्ते ॥ ४ ॥
Connotation: - या आप्तानां नीतिर्विदुषां स्तुतिः कमनीया भवेत् सोत्तमपराक्रमाय प्रभवति ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - आप्त श्रेष्ठ सद्धर्मी सज्जनांची नीती व विद्वानांची स्तुती मनोहर असेल तर ती पराक्रमासाठी समर्थ असते. ॥ ४ ॥