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ता वा॑म॒द्य ताव॑प॒रं हु॑वेमो॒च्छन्त्या॑मु॒षसि॒ वह्नि॑रु॒क्थैः। नास॑त्या॒ कुह॑ चि॒त्सन्ता॑व॒र्यो दि॒वो नपा॑ता सु॒दास्त॑राय ॥

English Transliteration

tā vām adya tāv aparaṁ huvemocchantyām uṣasi vahnir ukthaiḥ | nāsatyā kuha cit santāv aryo divo napātā sudāstarāya ||

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Pad Path

ता। वा॒म्। अ॒द्य। तौ। अ॒प॒रम्। हु॒वे॒म॒। उ॒च्छन्त्या॑म्। उ॒षसि॑। वह्निः॑। उ॒क्थैः। नास॑त्या। कुह॑। चि॒त्। सन्तौ॑। अ॒र्यः। दि॒वः। नपा॑ता। सु॒दाःऽत॑राय ॥ १.१८४.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:184» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:1» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब द्वितीयाष्टक के पञ्चम अध्याय के प्रथम सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अध्यापक और उपदेशक विषय को कहा है ।

Word-Meaning: - हे (नपाता) जिनका पात विद्यमान नहीं वे (नासत्या) मिथ्या व्यवहार से अलग हुए सत्यप्रिय विद्वानो ! हम लोग (अद्य) आज (उच्छन्त्याम्) नाना प्रकार का वास देनेवाली (उषसि) प्रभात वेला में (ता) उन (वाम्) तुम दोनों महाशयों को (हुवेम) स्वीकार करें (तौ) और उन आपको (अपरम्) पीछे भी स्वीकार करें तुम (कुह, चित्) किसी स्थान में (सन्तौ) हुए हो और जैसे (वह्निः) पदार्थों को एक स्थान को पहुँचानेवाले अग्नि के समान (अर्य्यः) वणियाँ (सुदास्तराय) अतीव सुन्दरता से उत्तम देनेवाले के लिये (उक्थैः) प्रशंसा करने के योग्य वचनों से (दिवः) व्यवहार के बीच वर्त्तमान है वैसे हम लोग वर्त्तें ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे विद्वान् जन आकाश और पृथिवी से उपकार करते हैं, वैसे हम लोग विद्वानों से उपकार को प्राप्त हुए वर्त्तें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनरध्यापकोपदेशकविषयमाह ।

Anvay:

हे नपाता नासत्या वयमद्य उच्छन्त्यामुषसि ता वां हुवेम तावपरं स्वीकुर्य्याम युवां कुह चित् सन्तौ यथा वह्निरिवार्य्यः सुदास्तरायोक्थैर्दिवो मध्ये वर्त्तेते तथा वयमपि वर्त्तेमहि ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (ता) तौ (वाम्) युवाम् (अद्य) (तौ) (अपरम्) पश्चात् (हुवेम) (उच्छन्त्याम्) विविधवासदात्र्याम् (उषसि) प्रभातवेलायाम् (वह्निः) वोढा (उक्थैः) प्रशंसनीयैर्वचोभिः (नासत्या) असत्यात् पृथग्भूतौ (कुह) कस्मिन् (चित्) अपि (सन्तौ) (अर्य्यः) वणिग्जनः (दिवः) व्यवहारस्य (नपाता) न विद्यते पातो ययोस्तौ (सुदास्तराय) अतिशयेन सुष्ठुप्रदात्रे ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा विद्वांसो द्यावापृथिवीभ्यामुपकारान् कुर्वन्ति तथा वयं विद्वद्भ्य उपकृता भवेम ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अध्यापक व उपदेशकाची लक्षणे सांगितलेली असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती समजली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्वान लोक आकाश व पृथ्वीद्वारे उपकार करतात तसे आम्हीही विद्वानांकडून उपकृत होऊन वागावे. ॥ १ ॥