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यु॒वां पू॒षेवा॑श्विना॒ पुरं॑धिर॒ग्निमु॒षां न ज॑रते ह॒विष्मा॑न्। हु॒वे यद्वां॑ वरिव॒स्या गृ॑णा॒नो वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥

English Transliteration

yuvām pūṣevāśvinā puraṁdhir agnim uṣāṁ na jarate haviṣmān | huve yad vāṁ varivasyā gṛṇāno vidyāmeṣaṁ vṛjanaṁ jīradānum ||

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Pad Path

यु॒वाम्। पू॒षाऽइ॑व। अ॒श्वि॒ना॒। पुर॑म्ऽधिः। अ॒ग्निम्। उ॒षाम्। न। ज॒र॒ते॒। ह॒विष्मा॑न्। हु॒वे। यत्। वा॒म्। व॒रि॒व॒स्या। गृ॒णा॒नः। वि॒द्याम॑। इ॒षम्। वृ॒जन॑म्। जी॒रऽदा॑नुम् ॥ १.१८१.९

Rigveda » Mandal:1» Sukta:181» Mantra:9 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:26» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (अश्विना) सत्योपदेश और रक्षा करनेवाले विद्वानो ! (अग्निम्) अग्नि और (उषाम्) प्रभात वेला को (यत्) जो (पुरन्धिः) जगत् को धारण करने और (पूषेव) पुष्टि करनेवाले सूर्य के समान (हविष्मान्) प्रशस्त दान जिसके विद्यमान वह जन (युवाम्) तुम दोनों की (न) जैसे (जरते) स्तुति करता है वैसे (वाम्) तुम दोनों की (वरिवस्या) सेवा में हुए कर्मों की (गृणानः) प्रशंसा करता हुआ वह मैं तुमको (हुवे) स्वीकार करता हूँ ऐसे करते हुए हम लोग (इषम्) विज्ञान (वृजनम्) बल और (जीरदानुम्) दीर्घजीवन को (विद्याम) जानें ॥ ९ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सूर्य सबकी पुष्टि करनेवाला अग्नि और प्रभात समय को प्रकट करता वैसे प्रशंसित दानशील पुरुष विद्वानों के गुणों को अच्छे प्रकार कहता है ॥ ९ ॥इस सूक्त में अश्वि के दृष्टान्त से अध्यापक और उपदेशकों के गुणों का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की सङ्गति पिछले सूक्त के साथ समझनी चाहिये ॥ यह एकसौ इक्यासीवाँ सूक्त और छब्बीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे अश्विनाऽग्निमुषां यत् पुरन्धिः पूषेव हविष्मान् युवां न जरते तथा वां वरिवस्या स गृणानः सन्नहं युवां हुवे। एवं कुर्वन्तो वयमिषं वृजनं जीरदानुञ्च विद्याम ॥ ९ ॥

Word-Meaning: - (युवाम्) (पूषेव) पुष्टिकर्त्ता सूर्य्यइव (अश्विना) सत्योपदेशकरक्षयितः (पुरन्धिः) यः पुरं जगद्धरति सः (अग्निम्) पावकम् (उषाम्) उषसं प्रभातवेलाम् (न) इव (जरते) स्तौति (हविष्मान्) प्रशस्तानि हवींषि दानानि विद्यन्ते यस्य सः (हुवे) स्वीकरोमि (यत्) यः (वाम्) युवयोः (वरिवस्या) वरिवसि परिचर्य्यायां भवानि सेवनकर्माणि (गृणानः) स्तुवन् (विद्याम) विजानीयाम् (इषम्) विज्ञानम् (वृजनम्) बलम् (जीरदानुम्) दीर्घं जीवनम् ॥ ९ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सूर्यः सर्वेषां पुष्टिकरोऽग्निं प्रभातकालं चाविः करोति तथा प्रशस्तदानशीलः पुरुषो विद्वद्गुणानाख्यापयति ॥ ९ ॥अस्मिन् सूक्तेऽश्विदृष्टान्तेनाऽध्यापकोपदेशकगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥इत्येकाशीत्युत्तरं शततमं सूक्तं षड्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा सूर्य सर्वांची पुष्टी करणारा अग्नी असून प्रभातवेळ प्रकट करतो तसे प्रशंसित दानशील पुरुष विद्वानांच्या गुणांचे चांगले वर्णन करतात. ॥ ९ ॥