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यस्मा॑दृ॒ते न सिध्य॑ति य॒ज्ञो वि॑प॒श्चित॑श्च॒न। स धी॒नां योग॑मिन्वति॥

English Transliteration

yasmād ṛte na sidhyati yajño vipaścitaś cana | sa dhīnāṁ yogam invati ||

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Pad Path

यस्मा॑त्। ऋ॒ते। न। सिध्य॑ति। य॒ज्ञः। वि॒पः॒ऽचितः॑। च॒न। सः। धी॒नाम्। योग॑म्। इ॒न्व॒ति॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:18» Mantra:7 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:35» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

वही सब जगत् को रचता है, इसका उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (यस्मात्) जिस (विपश्चितः) अनन्त विद्यावाले सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर के (ऋते) विना (यज्ञः) जो कि दृष्टिगोचर संसार है, सो (चन) कभी (न सिध्यति) सिद्ध नहीं हो सकता, (सः) वह जगदीश्वर सब मनुष्यों की (धीनाम्) बुद्धि और कर्मों के (योगम्) संयोग को (इन्वति) व्याप्त होता वा जानता है॥७॥
Connotation: - व्यापक सब में रहनेवाले ईश्वर और व्याप्य जगत् का नित्य सम्बन्ध है। वही सब संसार को रचकर तथा धारण करके सब की बुद्धि और कर्मों को अच्छी प्रकार जानकर सब प्राणियों के लिये उनके शुभ अशुभ कर्मों के अनुसार सुख दुःखरूप फल को देता है। कभी ईश्वर को छोड़ के अपने आप स्वभावमात्र से सिद्ध होनेवाला अर्थात् जिसका कोई स्वामी न हो, ऐसा संसार नहीं हो सकता, क्योंकि जड़ पदार्थों के अचेतन होने से यथायोग्य नियम के साथ उत्पन्न होने की योग्यता कभी नहीं होती॥७॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

स एव सर्वं जगद्रचयतीत्युपदिश्यते।

Anvay:

हे मनुष्या ! यस्माद्विपश्चितः सर्वशक्तिमतो जगदीश्वरादृते यज्ञश्चन न सिध्यति स सर्वप्राणिमनुष्याणां धीनां योगमिन्वति॥७॥

Word-Meaning: - (यस्मात्) परमेश्वरात् (ऋते) विना (न) निषेधे (सिध्यति) निष्पद्यते (यज्ञः) सङ्गतः संसारः (विपश्चितः) अनन्तविद्यावतः (चन) कदाचित् (सः) जगदीश्वरः (धीनाम्) प्रज्ञानां कर्मणां वा (योगम्) संयोजनम् (इन्वति) व्याप्नोति जानाति वा। इन्वतीति व्याप्तिकर्मसु पठितम्। (निघं०२.१८) गतिकर्मसु च। (निघं०२.१४)॥७॥
Connotation: - व्यापकस्येश्वरस्य व्याप्यस्य सर्वस्य जगतश्च द्वयोर्नित्यसम्बन्धोऽस्ति। स एव सर्वं जगद्रचयित्वा धृत्वा सर्वेषां बुद्धीनां चेष्टाया विज्ञाता सन् सर्वेभ्यः प्राणिभ्यस्तत्तत्कर्मानुसारेण सुखदुःखात्मकं फलं प्रददाति। नैव कश्चिदनीश्वरं स्वभावसिद्धमनधिष्ठातृकं जगद्भवितुमर्हति, जडानां विज्ञानाभावेन यथायोग्यनियमेनोत्पत्तुमनर्हत्वात्॥७॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - सर्वात व्यापक ईश्वर व व्याप्य जगाचा नित्य संबंध आहे, तोच सर्व संसार निर्माण करून धारण करून सर्वांची बुद्धी व कर्म चांगल्या प्रकारे जाणून सर्व प्राण्यांसाठी त्यांच्या शुभ अशुभ कर्मानुसार सुख- दुःखरूपी फळ देतो. ईश्वराशिवाय कोणी स्वामी नाही. आपोआप सिद्ध होणारे जग असू शकत नाही. कारण जड पदार्थ अचेतन असल्यामुळे यथायोग्य नियमपूर्वक उत्पन्न होणे शक्य नाही. ॥ ७ ॥