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स घा॑ वी॒रो न रि॑ष्यति॒ यमिन्द्रो॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑। सोमो॑ हि॒नोति॒ मर्त्य॑म्॥

English Transliteration

sa ghā vīro na riṣyati yam indro brahmaṇas patiḥ | somo hinoti martyam ||

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Pad Path

सः। घ॒। वी॒रः। न। रि॒ष्य॒ति॒। यम्। इन्द्रः॑। ब्रह्म॑णः। पतिः॑। सोमः॑। हि॒नोति॑। मर्त्य॑म्॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:18» Mantra:4 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:34» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अगले मन्त्र में इन्द्रादिकों के कार्य्यों का उपदेश किया है-

Word-Meaning: - उक्त इन्द्र (ब्रह्मणस्पतिः) ब्रह्माण्ड का पालन करनेवाला जगदीश्वर और (सोमः) सोमलता आदि ओषधियों का रससमूह (यम्) जिस (मर्त्यम्) मनुष्य आदि प्राणी को (हिनोति) उन्नतियुक्त करते हैं, (सः) वह (वीरः) शत्रुओं का जीतनेवाला वीर पुरुष (न घ रिष्यति) निश्चय है कि वह विनाश को प्राप्त कभी नहीं होता॥४॥
Connotation: - जो मनुष्य वायु, विद्युत्, सूर्य्य और सोम आदि ओषधियों के गुणों को ग्रहण करके अपने कार्य्यों को सिद्ध करते हैं, वे कभी दुखी नहीं होते॥४॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेन्द्रादिकृत्यान्युपदिश्यन्ते।

Anvay:

इन्द्रो ब्रह्मणस्पतिः सोमश्च यं मर्त्यं हिनोति स वीरो न घ रिष्यति नैव विनश्यति॥४॥

Word-Meaning: - (सः) इन्द्रो बृहस्पतिः सोमश्च (घ) एव। ऋचि तुनुघ० इति दीर्घः। (वीरः) अजति व्याप्नोति शत्रुबलानि यः (न) निषेधार्थे (रिष्यति) नश्यति (यम्) प्राणिनम् (इन्द्रः) वायुः (ब्रह्मणः) ब्रह्माण्डस्य (पतिः) पालयिता परमेश्वरः (सोमः) सोमलतादिसमूहरसः (हिनोति) वर्धयति (मर्त्यम्) मनुष्यम्॥४॥
Connotation: - ये वायुविद्युत्सूर्य्यसोमौषधगुणान् सङ्गृह्य कार्य्याणि साधयन्ति न ते खलु नष्टसुखा भवन्तीति॥४॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे वायू, विद्युत, सूर्य व सोम इत्यादींच्या औषधी गुणांना ग्रहण करून आपले कार्य सिद्ध करतात ती कधी दुःखी होत नाहीत. ॥ ४ ॥