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मा नः॒ शंसो॒ अर॑रुषो धू॒र्तिः प्रण॒ङ्मर्त्य॑स्य। रक्षा॑ णो ब्रह्मणस्पते॥

English Transliteration

mā naḥ śaṁso araruṣo dhūrtiḥ praṇaṅ martyasya | rakṣā ṇo brahmaṇas pate ||

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Pad Path

मा। नः॒। शंसः॑। अर॑रुषः। धू॒र्तिः। प्रण॑क्। मर्त्य॑स्य। रक्ष॑। नः॒। ब्र॒ह्म॒णः॒। प॒ते॒॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:18» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:34» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:5» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अगले मन्त्र में ईश्वर की प्रार्थना का प्रकाश किया है-

Word-Meaning: - हे (ब्रह्मणस्पते) वेद वा ब्रह्माण्ड के स्वामी जगदीश्वर ! आप (अररुषः) जो दान आदि धर्मरहित मनुष्य है, उस (मर्त्यस्य) मनुष्य के सम्बन्ध से (नः) हमारी (रक्ष) रक्षा कीजिये, जिससे कि वह (नः) हम लोगों के बीच में कोई मनुष्य (धूर्त्तिः) विनाश करनेवाला न हो और आपकी कृपा से जो (नः) हमारा (शंसः) प्रशंसनीय यज्ञ अर्थात् व्यवहार है, वह (मा पृणक्) कभी नष्ट न होवे॥३॥
Connotation: - किसी मनुष्य को धूर्त्त अर्थात् छल कपट करनेवाले मनुष्य का संग न करना तथा अन्याय से किसी की हिंसा न करनी चाहिये, किन्तु सब को सब की न्याय ही से रक्षा करनी चाहिये॥३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेश्वरप्रार्थनोपदिश्यते।

Anvay:

हे ब्रह्मणस्पते जगदीश्वर ! त्वमररुषो मर्त्त्यस्य सकाशान्नोऽस्मान् रक्ष, यतः स नोऽस्माकं मध्ये कश्चिद्धूर्त्तिर्मनुष्यो न भवेत्, भवत्कृपयाऽस्माकं शंसो मा प्रणक् कदाचिन्मा नश्यतु॥३॥

Word-Meaning: - (मा) निषेधार्थे (नः) अस्माकम् (शंसः) शंसन्ति यत्र सः (अररुषः) अदातुः। रा दाने इत्यस्मात्क्वसुस्ततः षष्ठ्येकवचनम्। (धूर्त्तिः) हिंसकः (प्रणक्) नश्यतु। अत्र लोडर्थे लुङ्। मन्त्रे घसह्वरणश० (अष्टा०२.४.८०) अनेन सूत्रेण च्लेर्लुक्। (मर्त्यस्य) मनुष्यस्य (रक्ष) पालय। द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (नः) अस्मानस्माकं वा (ब्रह्मणः) वेदस्य ब्रह्माण्डस्य वा (पते) स्वामिन्। षष्ठ्याः पति० विसर्जनीयस्य सत्वम्॥३॥
Connotation: - नैव केनचिन्मनुष्येण धूर्त्तस्य मनुष्यस्य कदाचित्सङ्गः कर्त्तव्यः। न चैवान्यायेन कस्यचिद्धिंसनं कर्त्तव्यम्, किन्तु सर्वैः सर्वस्य न्यायेनैव रक्षा विधेयेति॥३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - कोणत्याही माणसाने धूत अर्थात छळ कपट करणाऱ्या माणसांची संगती धरू नये तसेच अन्यायाने कुणाचीही हिंसा करू नये तर सर्वांचे न्यायाने रक्षण करावे. ॥ ३ ॥