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इ॒मं नु सोम॒मन्ति॑तो हृ॒त्सु पी॒तमुप॑ ब्रुवे। यत्सी॒माग॑श्चकृ॒मा तत्सु मृ॑ळतु पुलु॒कामो॒ हि मर्त्य॑: ॥

English Transliteration

imaṁ nu somam antito hṛtsu pītam upa bruve | yat sīm āgaś cakṛmā tat su mṛḻatu pulukāmo hi martyaḥ ||

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Pad Path

इ॒मम्। नु। सोम॑म्। अन्ति॑तः। हृ॒त्ऽसु। पी॒तम्। उप॑। ब्रु॒वे॒। यत्। सी॒म्। आगः॑। च॒कृ॒म। तत्। सु। मृ॒ळ॒तु॒। पु॒लु॒ऽकामः॑। हि। मर्त्यः॑ ॥ १.१७९.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:179» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:22» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब प्रकृत विषय में महौषधियों के सारसंग्रह को कहा है ।

Word-Meaning: - मैं (यत्) जिस (इमम्) इस (हृत्सु) हृदयों में (पीतम्) पिये हुए (सोमम्) ओषधियों के रस के (उप, ब्रुवे) उपदेशपूर्वक कहता हूँ उसको (पुलुकामः) बहुत कामनावाला (मर्त्यः) पुरुष (हि) ही (सुमृलतु) सुखसंयुक्त करे अर्थात् अपने सुख में उसका संयोग करे। जिस (आगः) अपराध को हम लोग (चकृम) करें (तत्) उसको (नु) शीघ्र (सीम्) सब ओर से (अन्तिमः) समीप से सभी जन छोड़ें अर्थात् क्षमा करें ॥ ५ ॥
Connotation: - जो महौषधियों के रस को पीते हैं, वे रोगरहित बलिष्ठ होते हैं, जो कुपथ्याचरण करते हैं, वे रोगों से पीड्यमान होते हैं ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ प्रकृतविषये महौषधिसारसङ्ग्रहविषयमाह ।

Anvay:

अहं यदिमं हृत्सु पीतं सोममुपब्रुवे तत्पुलुकामो हि मर्त्यः सुमृळतु यदागो वयं चकृम तन्नु सीमन्तितस्सर्वे त्यजन्तु ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (इमम्) (नु) (सोमम्) ओषधिरसम् (अन्तितः) समीपतः (हृत्सु) हृदयेषु (पीतम्) (उप) (ब्रुवे) उपदिशामि (यत्) (सीम्) सर्वतः (आगः) अपराधम् (चकृम) कुर्य्याम। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः। (तत्) (सु) (मृळतु) सुखयतु (पुलुकामः) बहुकामः (हि) खलु (मर्त्यः) मनुष्यः ॥ ५ ॥
Connotation: - ये महौषधिरसं पिबन्ति तेऽरोगा बलिष्ठा जायन्ते ये कुपथ्यमाचरन्ति ते रोगैः पीड्यन्ते ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे महौषधीचा रस पितात ते रोगरहित बलवान होतात. जे कुपथ्याचरण करतात ते रोगांनी त्रस्त होतात. ॥ ५ ॥