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ये चि॒द्धि पूर्व॑ ऋत॒साप॒ आस॑न्त्सा॒कं दे॒वेभि॒रव॑दन्नृ॒तानि॑। ते चि॒दवा॑सुर्न॒ह्यन्त॑मा॒पुः समू॒ नु पत्नी॒र्वृष॑भिर्जगम्युः ॥

English Transliteration

ye cid dhi pūrva ṛtasāpa āsan sākaṁ devebhir avadann ṛtāni | te cid avāsur nahy antam āpuḥ sam ū nu patnīr vṛṣabhir jagamyuḥ ||

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Pad Path

ये। चि॒त्। हि। पूर्वे॑। ऋ॒त॒ऽसापः॑। आस॑न्। सा॒कम्। दे॒वेभिः॑। अव॑दन्। ऋ॒तानि॑। ते। चि॒त्। अव॑। अ॒सुः॒। न॒हि। अन्त॑म्। आ॒पुः। सम्। ऊँ॒ इति॑। नु। पत्नीः॑। वृष॑ऽभिः। ज॒ग॒म्युः॒ ॥ १.१७९.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:179» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:22» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (ये) जो (ऋतसापः) सत्यव्यवहार में व्यापक वा दूसरों को व्याप्त करानेवाले (पूर्वे) पूर्व विद्वान् (देवेभिः) विद्वानों के (साकम्) साथ (ऋतानि) सत्यव्यवहारों को (अवदन्) करते हुए (ते, चित्, हि) वे भी सुखी (आसन्) हुए और जो (नु) शीघ्र (पत्नीः) स्त्रीजन (वृषभिः) वीर्य्यवान् पतियों के साथ (सम्, जगम्युः) निरन्तर जावें (चित्) उनके समान (अवासुः) दोषों को दूर करें वे (उ) (अन्तम्) अन्त को (नहि) नहीं (आपुः) प्राप्त होते हैं ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। ब्रह्मचर्य्यस्थ विद्यार्थियों को उन्हीं से विद्या और अच्छी शिक्षा लेनी चाहिये कि जो पहिले विद्या पढ़े हुए सत्याचारी जितेन्द्रिय हों और उन ब्रह्मचारियों के साथ विवाह करें, जो अपने तुल्य गुण, कर्म, स्वभाववाली विदुषी हों ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

ये ऋतसापः पूर्वे विद्वांसो देवेभिः साकमृतान्यवदंस्ते चिद्धि सुखिन आसन् ये नु पत्नीर्वृषभिस्सह संजग्म्युश्चिदिवाऽवासुस्त उ अन्तं नह्यापुः ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (ये) (चित्) (हि) खलु (पूर्वे) (ऋतसापः) य आप्नुवते त आपः समानाश्च ते इति सापः सन्त्यस्य मध्ये व्यापकाः व्यापयितारो वा विद्वांसः (आसन्) (साकम्) (देवेभिः) विद्वद्भिस्सह (अवदन्) (ऋतानि) सत्यानि (ते) (चित्) इव (अव) (असुः) दोषान् प्रक्षिपेयुः (नहि) (अन्तम्) (आपुः) प्राप्नुवन्ति (सम्) (उ) (नु) सद्यः (पत्नीः) स्त्रियः (वृषभिः) वीर्यवद्भिः पतिभिस्सह (जगम्युः) भृशं गच्छेयुः ॥ २ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। ब्रह्मचारिभिर्विद्यार्थिभिस्तेभ्य एव विद्या शिक्षे ग्राह्ये। ये पूर्वमधीतविद्याः सत्याचारिणो जितेन्द्रियाः स्युस्ताभिर्ब्रह्मचारिणीभिस्सह विवाहं कुर्युर्याः स्वतुल्यगुणकर्मस्वभावा विदुष्यः स्युः ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ब्रह्मचारी लोकांनी अशा लोकांकडून विद्या व सुशिक्षण घेतले पाहिजे की जे पूर्वीपासून विद्या शिकलेले, सत्याचरणी व जितेन्द्रिय असतात व अशा ब्रह्मचारिणीबरोबर विवाह करावा की ज्या आपल्यासारख्या गुण, कर्म स्वभावाच्या विदुषी असतील. ॥ २ ॥