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आ ति॑ष्ठ॒ रथं॒ वृष॑णं॒ वृषा॑ ते सु॒तः सोम॒: परि॑षिक्ता॒ मधू॑नि। यु॒क्त्वा वृष॑भ्यां वृषभ क्षिती॒नां हरि॑भ्यां याहि प्र॒वतोप॑ म॒द्रिक् ॥

English Transliteration

ā tiṣṭha rathaṁ vṛṣaṇaṁ vṛṣā te sutaḥ somaḥ pariṣiktā madhūni | yuktvā vṛṣabhyāṁ vṛṣabha kṣitīnāṁ haribhyāṁ yāhi pravatopa madrik ||

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Pad Path

आ। ति॒ष्ठ॒। रथ॑म्। वृष॑णम्। वृषा॑। ते॒। सु॒तः। सोमः॑। परि॑ऽसिक्ता। मधू॑नि। यु॒क्त्वा। वृष॑ऽभ्याम्। वृ॒ष॒भ॒। क्षि॒ती॒नाम्। हरि॑ऽभ्याम्। या॒हि॒। प्र॒ऽवता॑। उप॑। म॒द्रिक् ॥ १.१७७.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:177» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:20» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (वृषभ) दूसरों के सामर्थ्य रोकने से बलिष्ठ राजन् ! (मद्रिक्) हम लोगों को प्राप्त होते और (वृषा) रस आदि से परिपूर्ण होते हुए आप जो (ते) अपने लिये (सोमः) सोमलता आदि का रस (सुतः) उत्पन्न किया गया है उसमें (मधूनि) मीठे मीठे पदार्थ (परिषिक्ता) सब ओर से सींचे हुए हैं उस रस को पीकर (क्षितीनाम्) मनुष्यों के (वृषभ्याम्) प्रबल (हरिभ्याम्) हरणशील घोड़ों से (वृषणम्) दृढ़ (रथम्) रथ को (युक्त्वा) जोड़ युद्ध का (आ, तिष्ठ) यत्न करो वा युद्ध की प्रतिज्ञा पूर्ण करो और (प्रवता) नीचे मार्ग से (उप, याहि) समीप आओ ॥ ३ ॥
Connotation: - जो आहार-विहार से सोमादि ओषधियों के रस के सेवनेवाले, दीर्घ ब्रह्मचर्य्य, किये हुए शरीर और आत्मा के बल से युक्त राजजन बिजुली आदि पदार्थों के वेग से युक्त यानों को सिद्ध कर दण्ड से दुष्टों को निवारण कर न्याय से राज्य की रक्षा कराया करें, वे ही सुखी होते हैं ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे वृषभ राजन् मद्रिग्वृषा सँस्त्वं यस्ते सोमः सुतस्तत्र मधूनि परिषिक्ता तं पीत्वा क्षितीनां वृषभ्यां हरिभ्यां वृषणं रथं युक्त्वा युद्ध मा तिष्ठ प्रवतोप याहि ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (तिष्ठ) (रथम्) विमानादियानम् (वृषणम्) दृढम् (वृषा) रसादि पूर्णः (ते) तुभ्यम् (सुतः) निष्पादितः (सोमः) सोमलतादिरसः (परिषिक्ता) परितः सर्वतः सिक्तानि (मधूनि) मधुरादि द्रव्याणि (युक्त्वा) (वृषभ्याम्) बलिष्ठाभ्याम् (वृषभ) परशक्तिबन्धकत्वेन बलिष्ठ (क्षितीनाम्) मनुष्याणाम् (हरिभ्याम्) हरणशीलाभ्याम् (याहि) (प्रवता) निम्नेन मार्गेण (उप) (मद्रिक्) अस्मानञ्चन् प्राप्नुवन् ॥ ३ ॥
Connotation: - ये युक्ताहारविहाराः सोमाद्योषधिरससेविनो दीर्घब्रह्मचर्याः शरीरात्मबलयुक्ता राजानो विद्युदादिपदार्थवेगयुक्तानि यानानि साधयित्वा दण्डेन दुष्टान् निवार्य्य न्यायेन राज्यं रक्षयेयुस्त एव सुखिनो भवन्ति ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे आहारविहाराने युक्त, सोम इत्यादी औषधांचे रस पिणारे, दीर्घ ब्रह्मचर्य, शरीर आत्मा यांच्या बलाने युक्त राजे, विद्युत इत्यादी पदार्थांच्या वेगाप्रमाणे युक्त यान सिद्ध करून दंड देऊन दुष्टांचे निवारण करतात व न्यायाने राज्याचे रक्षण करतात, तेच सुखी होतात. ॥ ३ ॥