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आ च॑र्षणि॒प्रा वृ॑ष॒भो जना॑नां॒ राजा॑ कृष्टी॒नां पु॑रुहू॒त इन्द्र॑:। स्तु॒तः श्र॑व॒स्यन्नव॒सोप॑ म॒द्रिग्यु॒क्त्वा हरी॒ वृष॒णा या॑ह्य॒र्वाङ् ॥

English Transliteration

ā carṣaṇiprā vṛṣabho janānāṁ rājā kṛṣṭīnām puruhūta indraḥ | stutaḥ śravasyann avasopa madrig yuktvā harī vṛṣaṇā yāhy arvāṅ ||

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Pad Path

आ। च॒र्ष॒णि॒ऽप्राः। वृ॒ष॒भः। जना॑नाम्। राजा॑। कृ॒ष्टी॒नाम्। पु॒रु॒ऽहू॒तः। इन्द्रः॑। स्तु॒तः। श्र॒व॒स्यन्। अव॑सा। उप॑। म॒द्रिक्। यु॒क्त्वा। हरी॑। वृ॒ष॒णा। या॒हि॒। अ॒र्वाङ् ॥ १.१७७.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:177» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:20» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एकसौ सतहत्तर सूक्त का आरम्भ है। उसमें राजा और विद्वानों के गुणों को कहते हैं ।

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! जैसे (वृषभः) अतीव बलवान् (जनानाम्) शुद्ध गुणों में प्रसिद्ध हुए जनों में (चर्षणिप्राः) मनुष्यों को विद्या से पूर्ण करनेवाला (राजा) प्रकाशमान और (कृष्टीनाम्) मनुष्यों में (पुरुहूतः) बहुतों से सत्कार को प्राप्त हुआ (स्तुतः) प्रशंसित (श्रवस्यन्) अपने को अन्न की इच्छा करता हुआ (मद्रिक्) जो काम को प्राप्त होता वह (इन्द्रः) ऐश्वर्य का देनेवाला (वृषणा) अति बली (हरी) हरणशील घोड़ों को (युक्त्वा) जोड़कर (अर्वाङ्) नीचली भूमियों में जाता है वैसे (अवसा) रक्षा आदि के साथ हम लोगों के (उप, आ, याहि) समीप आओ ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे शुभ, गुण, कर्म, स्वभाववाले सभाध्यक्ष प्रजाजनों में चेष्टा करें, वैसे प्रजाजनों को भी चेष्टा करनी चाहिये। जैसे कोई विमान पर चढि और ऊपर को जायकर नीचे आता है, वैसे विद्वान् जन अगले-पिछले विषय को जाननेवाले हों ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजविद्वद्गुणानाह ।

Anvay:

हे विद्वन् तथा वृषभो जनानां चर्षणिप्रा राजा कृष्टीनां पुरुहूतः स्तुतः श्रवस्यन्मद्रिगिन्द्रो वृषणा हरी युक्त्वा अर्वाङ् याति तथाऽवसा त्वमस्मानुपा याहि ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (आ) समन्तात् (चर्षणिप्राः) यश्चर्षणीन्मनुष्यान् प्राति विद्यया पिपर्त्ति सः (वृषभः) अतीव बलवान् (जनानाम्) शुभगुणेषु प्रादुर्भूतानाम् (राजा) प्रकाशमानः (कृष्टीनाम्) मनुष्याणाम् (पुरुहूतः) बहुभिः सत्कृतः (इन्द्रः) ऐश्वर्यप्रदः (स्तुतः) प्रशंसितः (श्रवस्यन्) आत्मनः श्रवोऽन्नमिच्छन् (अवसा) रक्षणादिना (उप) (मद्रिक्) यो मद्रं काममञ्चति सः (युक्त्वा) संयोज्य (हरी) हरणशीलौ (वृषणा) बलिष्ठावश्वौ (याहि) प्राप्नुहि (अर्वाङ्) योऽर्वागधो देशमञ्चति गच्छति तम् ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा शुभगुणकर्मस्वभावा सभाध्यक्षाः प्रजासु चेष्टेरँस्तथा प्रजास्थैश्चेष्टितव्यम्। यथा कश्चिद्विमानमारुह्योपरि गत्वाऽध आयाति तथा विद्वांसः पराऽवरज्ञा स्युः ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

येथे राजा इत्यादी विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे हे जाणले पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. शुभ गुण, कर्म स्वभावाचा सभाध्यक्ष प्रजेशी जसा व्यवहार करतो तसा प्रजेचाही व्यवहार असावा. जशी एखादी व्यक्ती विमानात बसून वर खाली जाते येते तसे विद्वानानेही मागचा पुढचा विषय जाणावा. ॥ १ ॥