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असु॑न्वन्तं समं जहि दू॒णाशं॒ यो न ते॒ मय॑:। अ॒स्मभ्य॑मस्य॒ वेद॑नं द॒द्धि सू॒रिश्चि॑दोहते ॥

English Transliteration

asunvantaṁ samaṁ jahi dūṇāśaṁ yo na te mayaḥ | asmabhyam asya vedanaṁ daddhi sūriś cid ohate ||

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Pad Path

असु॑न्वन्तम्। स॒म॒म्। ज॒हि॒। दुः॒ऽनस॑म्। यः। न। ते॒। मयः॑। अ॒स्मभ्य॑म्। अ॒स्य॒। वेद॑नम्। द॒द्धि। सू॒रिः। चि॒त्। ओ॒ह॒ते॒ ॥ १.१७६.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:176» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:19» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे राजन् ! आप उस (असुन्वन्तम्) पदार्थों के सार खींचने आदि पुरुषार्थ से रहित (दूणाशम्) और दुःख से विनाशने योग्य (समम्) समस्त आलसीगण को (जहि) मारो दण्ड देओ कि (यः) जो (सूरिः) विद्वान् के (चित्) समान (ओहते) व्यवहारों की प्राप्ति करता है और (ते) तुम्हारे (मयः) सुख को (न) नही पहुँचाता तथा आप (अस्य) इसके (वेदनम्) धन को (अस्मभ्यम्) हमारे अर्थ (दद्धि) धारण करो ॥ ४ ॥
Connotation: - जो आलसी जन हों उनको राजा ताड़ना दिलावे। जैसे विद्वान् जन सबके लिये सुख देता है, वैसे जितना अपना सामर्थ्य हो उतना सुख सबके लिये देवे ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे राजन् त्वं तमसुन्वन्तं दूणाशं समं जहि यः सूरिश्चिदिवौहते ते मयो न प्रापयति त्वमस्य वेदनमस्मभ्यं दद्धि ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (असुन्वन्तम्) अभिषवादिनिष्पादनपुरुषार्थरहितम् (समम्) सर्वम् (जहि) (दूणाशम्) दुःखेन नाशनीयम् (यः) (न) निषेधे (ते) तव (मयः) सुखम् (अस्मभ्यम्) (अस्य) (वेदनम्) धनम् (दद्धि) धर। अत्र दध धारण इत्यस्माद्बहुलं छन्दसीति शपो लुक् व्यस्ययेन परत्मैपदञ्च। (सूरिः) विद्वान् (चित्) इव (ओहते) व्यवहारान् वहति। अत्र वाच्छन्दसीति संप्रसारणं लघूपधगुणः ॥ ४ ॥
Connotation: - येऽलसा भवेयुस्तान् राजा ताडयेत्। यथा विद्वान् सर्वेभ्यः सुखं ददाति तथा यावच्छक्यं तावत्सुखं सर्वेभ्यो दद्यात् ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे आळशी असतात त्यांची राजाने ताडना करावी. जसे विद्वान लोक सर्वांना सुख देतात तसे आपले सामर्थ्य असेल तितके सुख सर्वांना द्यावे. ॥ ४ ॥