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त्वं हि शूर॒: सनि॑ता चो॒दयो॒ मनु॑षो॒ रथ॑म्। स॒हावा॒न्दस्यु॑मव्र॒तमोष॒: पात्रं॒ न शो॒चिषा॑ ॥

English Transliteration

tvaṁ hi śūraḥ sanitā codayo manuṣo ratham | sahāvān dasyum avratam oṣaḥ pātraṁ na śociṣā ||

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Pad Path

त्वम्। हि। शूरः॑। सनि॑ता। चो॒दयः॑। मनु॑षः। रथ॑म्। स॒हऽवा॑न्। दस्यु॑म्। अ॒व्र॒तम्। ओषः॑। पात्र॑म्। न। शो॒चिषा॑ ॥ १.१७५.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:175» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:18» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजविषय में सेनापति के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे सेनापति ! (हि) जिस कारण (शूरः) शूरवीर निडर (सनिता) सेना को संविभाग करने अर्थात् पद्मादि व्यूह रचना से बाँटनेवाले (त्वम्) आप (मनुषः) मनुष्यों और (रथम्) युद्ध के लिये प्रवृत्त किये हुए रथ को (चोदयः) प्रेरणा दें अर्थात् युद्ध समय में आगे को बढ़ावें और (सहावान्) बलवान् आप (शोचिषा) दीपते हुए अग्नि की लपट से जैसे (पात्रम्) काष्ठ आदि के पात्र को (न) वैसे (अव्रतम्) दुश्शील दुराचारी (दस्युम्) हठ कर पराये धन को हरनेवाले दुष्टजन को (ओषः) जलाओ इससे मान्यभागी होओ ॥ ३ ॥
Connotation: - जो सेनापति युद्ध समय में रथ आदि यान और योद्धाओं को ढङ्ग से चलाने को जानते हैं, वे आग जैसे काष्ठ को वैसे डाकुओं को भस्म कर सकते हैं ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राज्यविषये सेनापतिविषयमाह ।

Anvay:

हे सेनेश हि यतः शूरस्सनिता त्वं मनुषो रथं चोदयः। सहावाञ्छोचिषा पात्रं नाव्रतं दस्युमोषस्तस्मान्मान्यभाक् स्याः ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (हि) यतः (शूरः) निर्भयः (सनिता) संविभक्ता (चोदयः) प्रेरय (मनुषः) मनुष्यान् (रथम्) युद्धाय प्रवर्त्तितम् (सहावान्) बलवान्। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः। (दस्युम्) प्रसह्यपरस्वापहर्त्तारम् (अव्रतम्) दुःशीलम् (ओषः) दहसि (पात्रम्) (न) इव (शोचिषा) प्रदीप्तयाऽग्निज्वालया ॥ ३ ॥
Connotation: - ये सेनापतयो युद्धसमये रथादियानानि योधॄँश्च युद्धाय प्रचालयितुं जानन्ति ते वह्निः काष्ठमिव दस्यून् भस्मीकर्त्तुं शक्नुवन्ति ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे सेनापती युद्धाच्या वेळी रथ इत्यादी यान चालविणे व योद्ध्यांना प्रेरणा देणे इत्यादी कार्ये करतात ते जसा अग्नी काष्ठ भस्म करतो तसे चोर लुटारूंना भस्म करू शकतात. ॥ ३ ॥