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रप॑त्क॒विरि॑न्द्रा॒र्कसा॑तौ॒ क्षां दा॒सायो॑प॒बर्ह॑णीं कः। कर॑त्ति॒स्रो म॒घवा॒ दानु॑चित्रा॒ नि दु॑र्यो॒णे कुय॑वाचं मृ॒धि श्रे॑त् ॥

English Transliteration

rapat kavir indrārkasātau kṣāṁ dāsāyopabarhaṇīṁ kaḥ | karat tisro maghavā dānucitrā ni duryoṇe kuyavācam mṛdhi śret ||

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Pad Path

रप॑त्। क॒विः। इ॒न्द्र॒। अ॒र्कऽसा॑तौ। क्षाम्। दा॒साय॑। उ॒प॒ऽबर्ह॑णीम्। क॒रिति॑ कः। कर॑त्। ति॒स्रः। म॒घऽवा॑। दानु॑ऽचित्राः। नि। दु॒र्यो॒णे। कुय॑वाचम्। मृ॒धि। श्रे॒त् ॥ १.१७४.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:174» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:17» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) सूर्य के समान सभापति ! जो (कविः) सर्वशास्त्रों का जाननेवाला (अर्कसातौ) अन्नों के अच्छे प्रकार विभाग में (दासाय) शूद्र वर्ग के लिये (उपबर्हणीम्) अच्छी वृद्धि देनेवाली (क्षाम्) भूमि को (कः) नियत करता वह सत्य स्पष्ट (रपत्) कहे जो (मघवा) उत्तम धन का सम्बन्ध रखनेवाला (तिस्रः) उत्तम, मध्यम और निकृष्ट कि (दानुचित्राः) अद्भुत दान जिनमें होता उन क्रियाओं को (करत्) नियत करे वह (दुर्योणे) समरभूमि विषयक (मृधि) युद्ध में (कुयवाचम्) कुत्सित यवों की प्रशंसा करनेवाले सामान्य जन का (नि, श्रेत्) आश्रय लेवे ॥ ७ ॥
Connotation: - शास्त्र जाननेवाले सभापति शूद्र वर्ग के लिये शास्त्र की शिक्षा के साथ उत्तमान्नादि की वृद्धि करनेवाली भूमि को संपादन करावें और सत्यशील तथा दान की विचित्रता संपादन करने के लिये उत्तम, मध्यम, निकृष्ट दानव्यवहारों को सिद्ध करे और सब काल में संग्रामादि भूमियों में शत्रुओं का संहार कर अपने राज्य को बढ़ाता रहे ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे इन्द्र यः कविरर्कसातौ दासायोपबर्हणीं क्षां कः स सत्यं रपद्यो मघवा तिस्रो दानुचित्राः करत्स दुर्योणे मृधि कुयवाचं निश्रेत् ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (रपत्) व्यक्तं वदेत् (कविः) सर्वशास्त्रवित् (इन्द्र) सूर्यवत् सभेश (अर्कसातौ) अन्नानां संविभागे (क्षाम्) भूमिम् (दासाय) शूद्रवर्गाय (उपबर्हणीम्) सुवर्द्धिकाम् (कः) करोति। अत्राडभावः। (करत्) कुर्यात् (तिस्रः) उत्तममध्यमनिकृष्टरूपेण त्रिविधा (मघवा) उत्तमधनसम्बन्धी (दानुचित्राः) अद्भुतदानाः (नि) (दुर्योणे) समराङ्गणे (कुयवाचम्) यः कुयवान्वक्ति प्रशंसति तम् (मृधि) युद्धे (श्रेत्) आश्रयेत् ॥ ७ ॥
Connotation: - शास्त्रज्ञस्सभापतिः शूद्रवर्गाय शास्त्रशिक्षयोत्तमान्नादिवृद्धिकरीं भूमिं सम्पादयेत्। सत्यशीलदानवैचित्र्यसम्पादनायोत्तममध्यमनिकृष्टान् दानव्यवहारान् सम्पादयेत् सर्वदा संग्रामादिभूमौ शत्रून् संहृत्य राज्यं विवर्द्धयेत् ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - शास्त्र जाणणाऱ्या सभापतीने शूद्र वर्गासाठी शास्त्राच्या शिक्षणाबरोबरच उत्तम अन्न इत्यादीची वृद्धी करणाऱ्या भूमीचे संपादन करावे व सत्यशीलतेने तसेच अद्भुत दान प्राप्त करण्यासाठी उत्तम, मध्यम, निकृष्ट दानव्यवहार सिद्ध करावा. सर्वकाळी संग्राम भूमीवर शत्रूंचा संहार करून आपले राज्य वाढवीत जावे. ॥ ७ ॥