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त्वम॒स्माक॑मिन्द्र वि॒श्वध॑ स्या अवृ॒कत॑मो न॒रां नृ॑पा॒ता। स नो॒ विश्वा॑सां स्पृ॒धां स॑हो॒दा वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥

English Transliteration

tvam asmākam indra viśvadha syā avṛkatamo narāṁ nṛpātā | sa no viśvāsāṁ spṛdhāṁ sahodā vidyāmeṣaṁ vṛjanaṁ jīradānum ||

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Pad Path

त्वम्। अ॒स्माक॑म्। इ॒न्द्र॒। वि॒श्वध॑। स्याः॒। अ॒वृ॒कऽत॑मः। न॒रान्। नृ॒ऽपा॒ता। सः। नः॒। विश्वा॑साम्। स्पृ॒धाम्। स॒हः॒ऽदाः। वि॒द्याम॑। इ॒षम्। वृ॒जन॑म्। जी॒रऽदा॑नुम् ॥ १.१७४.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:174» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:17» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) सुख देनेवाले ! (त्वम्) आप (अस्माकम्) हमारे बीच (विश्वध) सब प्रकार से (नराम्) मनुष्यों में (नृपाता) मनुष्यों की रक्षा करनेवाले अर्थात् प्रजाजनों की पालना करनेवाले और (अवृकतमः) जिनके सम्बन्ध में चोरजन नहीं ऐसे (स्याः) हूजिये तथा (सः) सो आप (नः) हमारे (विश्वासाम्) समस्त (स्पृधाम्) युद्ध की क्रियाओं के (सहोदाः) बल देनेवाले हूजिये जिससे हम लोग (जीरदानुम्) जीव के रूप को (वृजनम्) धर्मयुक्त मार्ग को और (इषम्) शास्त्रविज्ञान को (विद्याम) प्राप्त होवें ॥ १० ॥
Connotation: - जो यम-नियमों से युक्त नियत इन्द्रियोंवाले प्रजाजनों के रक्षक चौर्यादि कर्मों को छोड़े हुए अपने राज्य में निवास करते हैं, वे अत्यन्त ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं ॥ १० ॥इस मन्त्र में राजजनों के कृत्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पूर्व सूक्तार्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह एकसौ चौहत्तरवाँ सूक्त और सत्रहवाँ वर्ग पूरा हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे इन्द्र त्वमस्माकं मध्ये विश्वध नरां नृपातावृकतमः स्याः स नो विश्वासां स्पृधां सहोदाः स्या यतो वयं जीरदानुं वृजनमिषं च विद्याम ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (अस्माकम्) (इन्द्र) सुखप्रदातः (विश्वध) विश्वैस्सर्वैः प्रकारैरिति विश्वध। अत्र छान्दसो ह्रस्वः। (स्याः) भवेः (अवृकतमः) न सन्ति वृकाश्चौरा यस्य सम्बन्धे सोऽतिशयित इति (नराम्) नराणाम् (नृपाता) नृणां रक्षकः (सः) (नः) अस्माकम् (विश्वासाम्) सर्वासाम् (स्पृधाम्) युद्धक्रियाणाम् (सहोदाः) बलप्रदाः (विद्याम) विजानीयाम (इषम्) शास्त्रविज्ञानम् (वृजनम्) धर्म्यं मार्गम् (जीरदानुम्) जीवस्वरूपम् ॥ १० ॥
Connotation: - ये यमान्विता नियतेन्द्रियाः प्रजारक्षकाश्चौर्यादिकर्मत्यक्तवन्तो निवसेरँस्ते महदैश्वर्यमाप्नुवन्ति ॥ १० ॥अत्र राजकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥इति चतुस्सप्तत्युत्तरं शततमं सूक्तं सप्तदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे यम-नियमांनी युक्त इंद्रिय दमन करणारे असतात ते चोरी इत्यादी कर्मांचा त्याग करून प्रजेचे रक्षक बनून आपल्या राज्यात निवास करतात, ते अत्यंत ऐश्वर्यशाली बनतात. ॥ १० ॥
Footnote: या मंत्रात राजाच्या कृत्याचे वर्णन केल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्वोक्त सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥