Go To Mantra

प्र यदि॒त्था म॑हि॒ना नृभ्यो॒ अस्त्यरं॒ रोद॑सी क॒क्ष्ये॒३॒॑ नास्मै॑। सं वि॑व्य॒ इन्द्रो॑ वृ॒जनं॒ न भूमा॒ भर्ति॑ स्व॒धावाँ॑ ओप॒शमि॑व॒ द्याम् ॥

English Transliteration

pra yad itthā mahinā nṛbhyo asty araṁ rodasī kakṣye nāsmai | saṁ vivya indro vṛjanaṁ na bhūmā bharti svadhāvām̐ opaśam iva dyām ||

Mantra Audio
Pad Path

प्र। यत्। इ॒त्था। म॒हि॒ना। नृऽभ्यः॑। अस्ति॑। अर॑म्। रोद॑सी॒ इति॑। क॒क्ष्ये॒३॒॑ इति॑। न। अ॒स्मै॒। सम्। वि॒व्ये॒। इन्द्रः॑। वृ॒जन॑म्। न। भूम॑। भर्ति॑। स्व॒धाऽवा॑न्। ओ॒प॒शम्ऽइ॑व। द्याम् ॥ १.१७३.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:173» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:14» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:6


Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब इस प्रकृत विद्वद्विषय में लोकलोकान्तर विज्ञान विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (यत्) जो (इन्द्रः) सूर्य (वृजनम्) बल के (न) समान (भूम) बहुत पदार्थों को (सम्, विव्ये) अच्छे प्रकार स्वीकार करता और (स्वधावान्) अन्नादि पदार्थवाला यह सूर्यमण्डल (ओपशमिव) अत्यन्त एक में मिले हुए पदार्थ के समान (द्याम्) प्रकाश को (प्र, भर्त्ति) धारण करता (अस्मै) इसके लिये (कक्ष्ये) अपनी-अपनी कक्षाओं में प्रसिद्ध हुए (रोदसी) द्युलोक और पृथिवीलोक (न) नहीं (अरम्) परिपूर्ण होते वह (इत्था) इस प्रकार (महिना) अपनी महिमा से (नृभ्यः) अग्रगामी मनुष्यों के लिये परिपूर्ण (अरमस्ति) समर्थ हैं ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे प्रकाशरहित पृथिवी आदि पदार्थ सबका आच्छादन करते हैं, वैसे सूर्य अपने प्रकाश से सबका आच्छादन करता है। जैसे भूमिज पदार्थों को पृथिवी धारण करती है, ऐसे ही सूर्य भूगोलों को धारण करता है ॥ ६ ॥
Reads times

SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ प्रकृतविषये लोकलोकान्तरविषयमाह ।

Anvay:

यद्य इन्द्रो वृजनं न भूम संविव्ये स्वधावानोपशमिव द्यां प्रभर्त्ति अस्मै कक्ष्ये रोदसी नारं पर्यास इत्था महिना नृभ्योऽरमस्ति ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (प्र) (यत्) (इत्था) अस्माद्धेतोः (महिना) महिम्ना निजमहत्त्वेन (नृभ्यः) नायकेभ्यः (अस्ति) (अरम्) अलम् (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (कक्ष्ये) कक्षासु भवे (न) निषेधे (अस्मै) (सम्) (विव्ये) संवृणोति (इन्द्रः) सूर्यः (वृजनम्) बलम् (न) इव (भूम) भूमानि वस्तूनि। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (भर्त्ति) बिभर्त्ति। अत्र बहुलं छन्दसीति शपो लुक्। (स्वधावान्) अन्नवान् (ओपशमिव) अत्यन्तं सम्बद्धम् (द्याम्) प्रकाशम् ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोमालङ्कारौ। यथा प्रकाशरहिताः पृथिव्यादयः पदार्थाः सर्वमावृण्वन्ति तथा सूर्यः स्वप्रकाशेन सर्वमाच्छादयति यथा भौमान् पदार्थान् पृथिवी धरतीत्थमेव सूर्यो भूगोलान् बिभर्त्ति ॥ ६ ॥
Reads times

MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे प्रकाशरहित पृथ्वी इत्यादी पदार्थ सर्वांचे आच्छादन करतात तसे सूर्य आपल्या प्रकाशाने सर्वांचे आच्छादन करतो. जसे भूमीज पदार्थांना पृथ्वी धारण करते तसेच सूर्य भूगोलांना धारण करतो. ॥ ६ ॥