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अर्च॒द्वृषा॒ वृष॑भि॒: स्वेदु॑हव्यैर्मृ॒गो नाश्नो॒ अति॒ यज्जु॑गु॒र्यात्। प्र म॑न्द॒युर्म॒नां गू॑र्त॒ होता॒ भर॑ते॒ मर्यो॑ मिथु॒ना यज॑त्रः ॥

English Transliteration

arcad vṛṣā vṛṣabhiḥ sveduhavyair mṛgo nāśno ati yaj juguryāt | pra mandayur manāṁ gūrta hotā bharate maryo mithunā yajatraḥ ||

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Pad Path

अर्च॒त्। वृषा॑। वृष॑ऽभिः। स्वऽइदु॑हव्यैः। मृ॒गः। न। अश्नः॑। अति॑। यत्। जु॒गु॒र्यात्। प्र। म॒न्द॒युः। म॒नाम्। गू॒र्त॒। होता॑। भर॑ते। मर्यः॑। मि॒थु॒ना। यज॑त्रः ॥ १.१७३.२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:173» Mantra:2 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:13» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:2


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब चलते हुए प्रकरण में स्त्री-पुरुष के घर के काम के दृष्टान्त से औरों को उपदेश करते हैं ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (वृषा) सत्योपदेशरूपी शब्दों की वर्षा करनेवाला (अश्नः) शुभ गुणों में व्याप्त (मन्दयुः) अपनी प्रशंसा चाहता हुआ (होता) दानशील (यजत्रः) सङ्ग करनेवाला (मर्यः) मरणधर्म्मा मनुष्य (स्वेदुहव्यैः) आप ही प्रकाशित किये देने-लेने के व्यवहारों और (वृषभिः) उपदेश करनेवालों के साथ (यत्) जो (मृगः) हरिण के (न) समान (अति, जुगुर्यात्) अतीव उद्यम करे, अति यत्न करे और (भरते) धारण करता (मनाम्) विचारशीलों का सङ्ग (अर्चत्) सराहे प्रशंसित करे वा जैसे (मिथुना) स्त्री-पुरुष दो-दो मिलके सङ्ग धर्म को करें वैसे तुम (प्र, गूर्त्त) उत्तम उद्यम करो ॥ २ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे स्वयंवर किये हुए स्त्री-पुरुष परस्पर उद्योग कर हरिण के समान वेग से घर के कामों को सिद्ध कर विद्वानों के सङ्ग से सत्य का स्वीकार कर असत्य को छोड़कर परमेश्वर और विद्वानों का सत्कार करते हैं, वैसे समस्त मनुष्य सङ्ग करनेवाले हों ॥ २ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ प्रकृतविषये स्त्रीपुरुषयोर्गृहकृत्यदृष्टान्तेनान्यानुपदिशति ।

Anvay:

हे मनुष्या यथा वृषा अश्नो मन्दयुर्होता यजत्रो मर्यो स्वेदुहव्यैर्वृषभिस्सह यन्मृगो नाऽति जुगुर्याद्भरते मनां सङ्गमर्चत् यथा वा मिथुना सङ्गतं व्यवहारं कुर्युस्तथा यूयं प्रगूर्त्त ॥ २ ॥

Word-Meaning: - (अर्चत्) अर्चेत् (वृषा) सत्योपदेशशब्दवर्षकः (वृषभिः) उपदेशकैः सह (स्वेदुहव्यैः) स्वेन प्रकाशितदानाऽऽदानैः (मृगः) (न) इव (अश्नः) व्यापकः (अति) (यत्) (जुगुर्यात्) उद्यच्छेत् (प्र) (मन्दयुः) आत्मनो मन्दं प्रंशसनमिच्छुः (मनाम्) मननशीलानाम् (गूर्त्त) उद्यच्छत (होता) दाता (भरते) धरते (मर्यः) मरणधर्मा मनुष्यः (मिथुना) मिथुनानि स्त्रीपुरुषद्वन्द्वानि (यजत्रः) सङ्गन्ता ॥ २ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा स्वयंवृताः स्त्रीपुरुषाः परस्परमुद्योगं कृत्वा मृगवद्वेगेन गृहकृत्यानि संसाध्य विदुषां सङ्गेन सत्यं स्वीकृत्याऽसत्यं विहाय परमेश्वरं विदुषश्च सत्कुर्वन्ति तथा सर्वे मनुष्याः सङ्गन्तारः स्युः ॥ २ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे स्वयंवर केलेले स्त्री-पुरुष परस्पर उद्योग करून हरिणाप्रमाणे वेगाने गृहकृत्ये करतात व विद्वानांच्या संगतीने सत्याचा स्वीकार व असत्याचा त्याग करतात आणि परमेश्वर व विद्वान यांचा सत्कार करतात तसे संपूर्ण माणसांनी वागावे. ॥ २ ॥