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ए॒ष स्तोम॑ इन्द्र॒ तुभ्य॑म॒स्मे ए॒तेन॑ गा॒तुं ह॑रिवो विदो नः। आ नो॑ ववृत्याः सुवि॒ताय॑ देव वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥

English Transliteration

eṣa stoma indra tubhyam asme etena gātuṁ harivo vido naḥ | ā no vavṛtyāḥ suvitāya deva vidyāmeṣaṁ vṛjanaṁ jīradānum ||

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Pad Path

ए॒षः। स्तोमः॑। इ॒न्द्र॒। तुभ्य॑म्। अ॒स्मे इति॑। ए॒तेन॑। गा॒तुम्। ह॒रि॒ऽवः॒। वि॒दः॒। नः॒। आ। नः॒। व॒वृ॒त्याः॒। सु॒वि॒ताय॑। दे॒व॒। वि॒द्याम॑। इ॒षम्। वृ॒जन॑म्। जी॒रऽदा॑नुम् ॥ १.१७३.१३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:173» Mantra:13 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:15» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (देव) सुख देनेवाले (इन्द्र) प्रशंसायुक्त ऐश्वर्यवान् ! जो (एषः) यह (अस्मे) हमारी (स्तोमः) स्तुतिपूर्वक चाहना है वह (तुभ्यम्) तुम्हारे लिये हो। हे (हरिवः) प्रशंसित घोड़ोंवाले ! आप (एतेन) इस न्याय से (गातुम्) भूमि और (नः) हम लोगों को (विदः) प्राप्त हूजिये (नः) हमारे (सुविताय) ऐश्वर्य के लिये (आ, ववृत्याः) आ वर्त्तमान हूजिये जिससे हम लोग (इषम्) इच्छा सिद्धि (वृजनम्) सन्मार्ग और (जीरदानुम्) दीर्घ जीवन को (विद्याम) प्राप्त होवें ॥ १३ ॥
Connotation: - किसी भद्रजन को अपने मुख से अपनी प्रशंसा नहीं करनी चाहिये तथा और ने कही हुई अपनी प्रशंसा सुनकर न आनन्दित होना चाहिये अर्थात् न हँसना चाहिये, जैसे अपने से अपनी उन्नति चाही जावे वैसे औरों की उन्नति सदैव चाहनी चाहिये ॥ १३ ॥इस सूक्त में विद्वानों के विषय का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह एकसौ तिहत्तरवाँ सूक्त और पन्द्रहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे देवेन्द्र य एषोऽस्मे स्तोमोऽस्ति स तुभ्यमस्तु। हे हरिवो त्वमेतेन गातु नोऽस्माँश्च विदः नः सुविताय आ ववृत्या यतो वयमिषं वृजनं जीरदानुं च विद्याम ॥ १३ ॥

Word-Meaning: - (एषः) (स्तोमः) श्लाघा (इन्द्र) प्रशस्तैश्वर्य (तुभ्यम्) (अस्मे) अस्माकम् (एतेन) न्यायेन (गातुम्) भूमिम् (हरिवः) प्रशस्ता हरयोऽश्वा विद्यन्ते यस्य तत्सम्बद्धौ (विदः) लभस्व (नः) अस्मान् (आ) (नः) अस्माकम् (ववृत्याः) वर्त्तेथाः (सुविताय) ऐश्वर्याय (देव) सुखप्रद (विद्याम) प्राप्नुयाम (इषम्) इच्छासिद्धिम् (वृजनम्) सन्मार्गम् (जीरदानुम्) दीर्घञ्जीवनम् ॥ १३ ॥
Connotation: - केनचिद्भद्रेण जनेन स्वमुखेन स्वप्रशंसा नैव कार्य्या परोक्तां स्वप्रशंसां श्रुत्वा न प्रमुदितव्यम्। यथा स्वोन्नतिरिष्येत तथा परोन्नतिः सदैष्टव्येति ॥ १३ ॥।अत्र विद्वद्विषयवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥इति त्रिसप्तत्युत्तरं शततमं सूक्तं पञ्चदशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - कोणत्याही सज्जन माणसाने स्वतः आपली प्रशंसा करू नये तसेच इतरांनी केलेली प्रशंसा ऐकून आनंदित होता कामा नये. आपल्या उन्नतीची जशी इच्छा केली जाते तशी इतरांच्या उन्नतीची इच्छा केली पाहिजे. ॥ १३ ॥