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विष्प॑र्धसो न॒रां न शंसै॑र॒स्माका॑स॒दिन्द्रो॒ वज्र॑हस्तः। मि॒त्रा॒युवो॒ न पूर्प॑तिं॒ सुशि॑ष्टौ मध्या॒युव॒ उप॑ शिक्षन्ति य॒ज्ञैः ॥

English Transliteration

viṣpardhaso narāṁ na śaṁsair asmākāsad indro vajrahastaḥ | mitrāyuvo na pūrpatiṁ suśiṣṭau madhyāyuva upa śikṣanti yajñaiḥ ||

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Pad Path

विऽस्प॑र्धसः। न॒राम्। न। शंसैः॑। अ॒स्माक॑। अ॒स॒त्। इन्द्रः॑। वज्र॑ऽहस्तः। मि॒त्र॒ऽयुवः॑। न। पूःऽप॑तिम्। सुऽशि॑ष्टौ। म॒ध्य॒ऽयुवः॑। उप॑। शि॒क्ष॒न्ति॒। य॒ज्ञैः ॥ १.१७३.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:173» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:14» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब राजशिक्षा पर विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - (वज्रहस्तः) शस्त्र और अस्त्रों की शिक्षा जिसके हाथ में है वह (इन्द्रः) सभापति (अस्माक) हमारा (असत्) हो अर्थात् हमारा रक्षक हो ऐसी (नराम्) धर्म की प्राप्ति करानेवाले पुरुषों की (शंसैः) प्रशंसायुक्त विवादों के (न) समान वादानुवादों से (विष्पर्द्धसः) परस्पर विशेषता से स्पर्द्धा ईर्ष्या करते और (मित्रायुवः) अपने को मित्र चाहते हुए जनों के (न) समान (मध्यायुवः) मध्यस्थ चाहते हुए विद्वान् जन (सुशिष्टौ) उत्तम शिक्षा के निमित्त (यज्ञैः) पढ़ना-पढ़ाना, उपदेश करना और सङ्ग मेल-मिलाप करना इत्यादि कर्मों से (पूर्पतिम्) पुरी नगरियों के पालनेवाले सभापति राजा को (उप, शिक्षन्ति) उपशिक्षा देते हैं अर्थात् उसके समीप जाकर उसे अच्छे-बुरे का भेद सिखाते हैं ॥ १० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। जैसे सत्याचरण में स्पर्द्धा करनेवाले सबके मित्र पक्षपातरहित सत्य का आचरण करते हुए जन सत्य का उपदेश करते हैं, वैसे ही सभापति राजा प्रजाजनों में वर्त्ते ॥ १० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ राजशासनपरं विद्वद्विषयमाह ।

Anvay:

वज्रहस्त इन्द्रोऽस्माकासदिति नरां शंसैर्न वादानुवादैः परस्परं विस्पर्द्धसो मित्रायुवो न मध्यायुवो जनाः सुशिष्टौ यज्ञैः पूर्पतिमुपशिक्षन्ति ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (विष्पर्द्धसः) परस्परं विशेषतः स्पर्द्धमानाः (नराम्) धर्मस्य नेतॄणाम् (न) इव (शंसैः) प्रशंसायुक्तैः (अस्माक) अस्माकम्। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति मलोपः। (असत्) भवेत् (इन्द्रः) सभेशः (वज्रहस्तः) शस्त्रास्त्रशासनपाणिः (मित्रायुवः) य आत्मनो मित्राणीच्छवः (न) इव (पूर्पतिम्) पुरां पालकम् (सुशिष्टौ) शोभने शासने (मध्यायुवः) य आत्मनो मध्यं मध्यस्थमिच्छवो विद्वांसः (उप) (शिक्षन्ति) शिक्षां प्रददति (यज्ञैः) अध्यापनाऽध्ययनोपदेशसङ्गतिकरणैः ॥ १० ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा सत्याचरणस्पर्द्धिनः सर्वेषां सुहृदः पक्षपातविरहाः सत्यमाचरन्तो जनाः सत्यमुपदिशन्ति तथैव सभेशो राजा प्रजासु वर्त्तेत ॥ १० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे सत्याचरणात स्पर्धा करणारे, सर्वांचे मित्र, पक्षपातरहित, सत्याचे आचरण करणारे लोक सत्याचा उपदेश करतात तसेच सभापतीने (राजाने) लोकांशी वागावे. ॥ १० ॥