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तृ॒ण॒स्क॒न्दस्य॒ नु विश॒: परि॑ वृङ्क्त सुदानवः। ऊ॒र्ध्वान्न॑: कर्त जी॒वसे॑ ॥

English Transliteration

tṛṇaskandasya nu viśaḥ pari vṛṅkta sudānavaḥ | ūrdhvān naḥ karta jīvase ||

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Pad Path

तृ॒ण॒ऽस्क॒न्दस्य॑। नु। विशः॑। परि॑। वृ॒ङ्क्त॒। सु॒ऽदा॒न॒वः॒। ऊ॒र्ध्वान्। नः॒। क॒र्त॒। जी॒वसे॑ ॥ १.१७२.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:172» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:12» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (सुदानवः) उत्तम दान देनेवाले ! तुम (तृणस्कन्दस्य) जो तृणों को प्राप्त अर्थात् तृणमात्र का लोभ करता वा दूसरों को उस लोभ पर पहुँचाता उसकी (विशः) प्रजा को (नु) शीघ्र (परि, वृङ्क्त) सब ओर से छोड़ो और (जीवसे) जीवने के अर्थ (नः) हम लोगों को (ऊर्द्ध्वान्) उत्कृष्ट (कर्त्त) करो ॥ ३ ॥
Connotation: - जैसे वायु समस्त प्रजा की रक्षा करता वैसे सभापति वर्त्तें। जैसे प्रजाजनों की पीड़ा नष्ट हो मनुष्य उत्कृष्ट अति उत्तम बहुत जीवनेवाले उत्पन्न हों, वैसा कार्य्यारम्भ सबको करना चाहिये ॥ ३ ॥इस सूक्त में पवन के तुल्य विद्वानों के गुणों की प्रशंसा होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह एकसौ बहत्तरवाँ सूक्त और बारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे सुदानवो यूयं तृणस्कन्दस्य विशो नु परि वृङ्क्त जीवसे नो ऊर्द्ध्वान् कर्त्त ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (तृणस्कन्दस्य) यस्तृणानि स्कन्दति गच्छति गमयति वा तस्य (नु) शीघ्रम् (विशः) प्रजाः (परि) सर्वतः (वृङ्क्त) त्यजत (सुदानवः) उत्तमदानाः (ऊर्द्ध्वान्) उत्कृष्टान् (नः) अस्मान् (कर्त्त) कुरुत (जीवसे) जीवितुम् ॥ ३ ॥
Connotation: - यथा वायुः सर्वाः प्रजा रक्षति तथा सभेशो वर्त्तेत। यथा प्रजापीडा नश्येत् मनुष्या उत्कृष्टा दीर्घजीविनो जायेरन् तथा सर्वैरनुष्ठेयम् ॥ ३ ॥अत्र वायुवद्विद्वद्गुणप्रशंसनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥इति द्विसप्तत्युत्तरं शततमं सूक्तं द्वादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

N/A

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जसा वायू संपूर्ण प्रजेचे रक्षण करतो तसे सभापतीने वागावे. प्रजेचा त्रास नष्ट व्हावा व माणसे दीर्घजीवी व्हावीत असे अनुष्ठान सर्वांनी करावे. ॥ ३ ॥