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त्वं पा॑हीन्द्र॒ सही॑यसो॒ नॄन्भवा॑ म॒रुद्भि॒रव॑यातहेळाः। सु॒प्र॒के॒तेभि॑: सास॒हिर्दधा॑नो वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥

English Transliteration

tvam pāhīndra sahīyaso nṝn bhavā marudbhir avayātaheḻāḥ | supraketebhiḥ sāsahir dadhāno vidyāmeṣaṁ vṛjanaṁ jīradānum ||

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Pad Path

त्वम्। पा॒हि॒। इ॒न्द्र॒। सही॑यसः। नॄन्। भव॑। म॒रुत्ऽभिः॑। अव॑यातऽहेळाः। सु॒ऽप्र॒के॒तेभिः॑। स॒स॒हिः। दधा॑नः। वि॒द्याम॑। इ॒षम्। वृ॒जन॑म्। जी॒रऽदा॑नुम् ॥ १.१७१.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:171» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:11» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) सभापति ! (त्वम्) आप (सुप्रकेतेभिः) सुन्दर उत्तम ज्ञानवान् (मरुद्भिः) प्राण के समान रक्षा करनेवाले विद्वानों के साथ (सहीयसः) अतीव बलयुक्त सहनेवाले (नॄन्) मनुष्यों की (पाहि) रक्षा कीजिये और (अवयातहेळाः) दूर हुआ अनादर अपकीर्त्तिभाव जिससे ऐसे (भव) हूजिये जैसे (इषम्) विद्या योग से उत्पन्न हुए बोध (वृजनम्) बल और (जीरदानुम्) जीवात्मा को (दधानः) धारण करते हुए (सासहिः) अतीव सहनशील होते हो वैसे हुए इसको हम लोग (विद्याम) जानें ॥ ६ ॥
Connotation: - जो मनुष्य क्रोधादि दोषरहित विद्या विज्ञान धर्म्मयुक्त क्षमावान् जन सज्जनों के साथ जो दण्ड देने योग्य नहीं हैं उनकी रक्षा करते और दण्ड देने योग्यों को दण्ड देते हैं, वे राजकर्मचारी होनेके योग्य हैं ॥ ६ ॥इस सूक्त में विद्वानों के कृत्य का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह एकसौ इकहत्तरवाँ सूक्त और ग्यारहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे इन्द्र त्वं सुप्रकेतेभिर्मरुद्भिः सहीयसो नॄन् पाहि। अवयातहेळा भव यथेषं वृजनं जीरदानुं दधानः सन् सासहिर्भवसि तथा भूत्वैतद्वयं विद्याम ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (त्वम्) (पाहि) (इन्द्र) सभेश (सहीयसः) अतिशयेन बलयुक्तान् सोढॄन् (नॄन्) मनुष्यान् (भव) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (मरुद्भिः) प्राण इव रक्षकैर्विद्वद्भिः (अवयातहेळाः) अवयातं दूरीभूतं हेळो यस्मात् सः (सुप्रकेतेभिः) शोभनः प्रकृष्टः केतो विज्ञानं येषान्ते (सासहिः) अतिशयेन सोढा (दधानः) धरन् (विद्याम) जानीयाम (इषम्) विद्यायोगजं बोधम् (वृजनम्) बलम् (जीरदानुम्) जीवात्मानम् ॥ ६ ॥
Connotation: - ये मनुष्या क्रोधादिदोषरहिता विद्याविज्ञानधर्मयुक्ताः क्षमावन्तः सज्जनैस्सह अदण्ड्यान् रक्षन्ति दण्ड्यान् दण्डयन्ति च ते राजकर्मचारिणो भवितुमर्हन्ति ॥ ६ ॥अत्र विद्वत्कृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥इति एकसप्तत्युत्तरं शततमं सूक्तमेकादशो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे क्रोध इत्यादी दोषांनी रहित विद्या विज्ञान धर्मयुक्त, क्षमाशील, सज्जनांना दंड देत नाहीत व दंड देण्यायोग्यास दंड देतात, ते राजकर्मचारी बनण्यास योग्य असतात. ॥ ६ ॥