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अ॒स्माद॒हं त॑वि॒षादीष॑माण॒ इन्द्रा॑द्भि॒या म॑रुतो॒ रेज॑मानः। यु॒ष्मभ्यं॑ ह॒व्या निशि॑तान्यास॒न्तान्या॒रे च॑कृमा मृ॒ळता॑ नः ॥

English Transliteration

asmād ahaṁ taviṣād īṣamāṇa indrād bhiyā maruto rejamānaḥ | yuṣmabhyaṁ havyā niśitāny āsan tāny āre cakṛmā mṛḻatā naḥ ||

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Pad Path

अ॒स्मात्। अ॒हम्। त॒वि॒षात्। ईष॑माणः। इन्द्रा॑त्। भि॒या। म॒रु॒तः॒। रेज॑मानः। यु॒ष्मभ्य॑म्। ह॒व्या। निऽशि॑तानि। आ॒स॒न्। तानि॑। आ॒रे। च॒कृ॒म॒। मृ॒ळत॑। नः॒ ॥ १.१७१.४

Rigveda » Mandal:1» Sukta:171» Mantra:4 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:11» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:4


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (मरुतः) प्राण के समान सभासदो ! (अस्मात्) इस (तविषात्) अत्यन्त बलवान् से (ईषमाणः) ऐश्वर्य करता और (इन्द्रात्) परमैश्वर्यवान् सभा सेनापति से (भिया) सबके साथ (रेजमानः) कम्पता हुआ (अहम्) मैं यह निवेदन करता हूँ कि जो (युष्मभ्यम्) तुम्हारे लिये (हव्या) ग्रहण करने योग्य (निशितानि) शस्त्र-अस्त्र तीव्र (आसन्) हैं (तानि) उनको हम लोग (आरे) समीप (चकृम) करें और उनसे (नः) हम लोगों को तुम जैसे (मृळत) सुखी करो वैसे हम भी तुम लोगों को सुखी करें ॥ ४ ॥
Connotation: - जब किसी राजपुरुष से अन्यायपूर्वक पीड़ा को प्राप्त होता हुआ प्रजाजन सभा के बीच अपने दुःख का निवेदन करे तब उसके मन के कांटों को उपाड़ देवें अर्थात् उसके मन की शुद्ध भावना करा देवें जिससे राजपुरुष न्याय में वर्त्ते और प्रजाजन भी प्रसन्न हों, जितने स्त्री पुरुष हों सब शस्त्र का अभ्यास करें ॥ ४ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मरुतोऽस्मात्तविषादीषमाण इन्द्राद्भिया रेजमानोऽहमिदं निवेदयामि। यानि युष्मभ्यं हव्या निशितान्यासंस्तानि वयमारे चकृम तैर्नोऽस्मान् यूयं यथा मृळत तथा वयमपि युष्मान् सुखयेम ॥ ४ ॥

Word-Meaning: - (अस्मात्) (अहम्) (तविषात्) बलिष्ठात् (ईषमाणः) ऐश्वर्यं कुर्वन्। अत्र बहुलं छन्दसीति शपो लुक्। (इन्द्रात्) परमैश्वर्यात् सभासेनेशात् (भिया) भयेन (मरुतः) प्राण इव प्रियाः सभासदः (रेजमानः) कम्पमानः (युष्मभ्यम्) (हव्या) आदातुमर्हाणि (निशितानि) तीव्राणि शस्त्रास्त्राणि (आसन्) सन्ति (तानि) (आरे) समीपे (चकृम) कुर्याम (मृळत) सुखयत। अत्रोभयत्राऽन्येषामपीति दीर्घः। (नः) अस्मान् ॥ ४ ॥
Connotation: - यदा कस्माच्चिद्राजपुरुषादन्यायेन पीड्यमानः प्रजाजनः सभायां स्वदुःखं निवेदयेत्तदा तस्य हृच्छल्यमुत्पाटयेत्। येन राजपुरुषा न्याये वर्त्तेरन्। प्रजाजनाश्च प्रीताः स्युः। यावन्तः स्त्रीपुरुषा भवेयुस्तावन्तः सर्वे शस्त्राभ्यासं कुर्युः ॥ ४ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - एखाद्या राजपुरुषाने प्रजेवर अन्याय केल्यास त्या पीडाग्रस्त माणसाने सभेत आपले दुःख निवेदन करावे. तेव्हा त्याच्या मनातील शल्य काढून टाकावे. अर्थात त्याच्या मनाची भावना शुद्ध करावी. ज्यामुळे राजपुरुषाने न्यायाने वागावे व प्रजाही प्रसन्न व्हावी. जितके स्त्री-पुरुष असतील त्या सर्वांनी शस्त्रांचा अभ्यास करावा. ॥ ४ ॥