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स्तु॒तासो॑ नो म॒रुतो॑ मृळयन्तू॒त स्तु॒तो म॒घवा॒ शम्भ॑विष्ठः। ऊ॒र्ध्वा न॑: सन्तु को॒म्या वना॒न्यहा॑नि॒ विश्वा॑ मरुतो जिगी॒षा ॥

English Transliteration

stutāso no maruto mṛḻayantūta stuto maghavā śambhaviṣṭhaḥ | ūrdhvā naḥ santu komyā vanāny ahāni viśvā maruto jigīṣā ||

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Pad Path

स्तु॒तासः॑। नः॒। म॒रुतः॑। मृ॒ळ॒य॒न्तु॒। उ॒त। स्तु॒तः। म॒घऽवा॑। शम्ऽभ॑विष्ठः। ऊ॒र्ध्वा। नः॒। स॒न्तु॒। को॒म्या। वना॑नि। अहा॑नि। विश्वा॑। म॒रु॒तः॒। जि॒गी॒षा ॥ १.१७१.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:171» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:11» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (मरुतः) बलवान् विद्वानो ! हम लोगों से (स्तुतासः) स्तुति किये हुए आप (नः) हमको (मृळयन्तु) सुखी करो (उत) और (स्तुतः) प्रशंसा को प्राप्त होता हुआ (मघवा) सत्कार करने योग्य पुरुष (शम्भविष्ठः) अतीव सुख की भावना करनेवाला हो। हे (मरुतः) शूरवीर जनो ! जैसे (नः) हमारे (विश्वा) समस्त (कोम्या) प्रशंसनीय (जिगीषा) जीतने और (वनानि) सेवने योग्य (अहानि) दिन (ऊर्ध्वा) उत्कृष्ट हैं वैसे तुम्हारे (सन्तु) हों ॥ ३ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि जिनमें जैसे गुण, कर्म, स्वभाव हों, उनकी वैसी ही प्रशंसा करें और प्रशंसा योग्य वे ही हों जो औरों की सुखोन्नति के लिये प्रयत्न करें और वे ही सेवने योग्य हों जो पापाचरण को छोड़ धार्मिक हों, वे प्रतिदिन विद्या और उत्तम शिक्षा की वृद्धि के अर्थ उद्योगी हों ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मरुतोऽस्माभिः स्तुतासो भवन्तो नोऽस्मान् मृळयन्तु उतापि स्तुतस्सन्मघवा शम्भविष्ठोऽस्तु। हे मरुतो यथा नो विश्वा कोम्या जिगीषा वनान्यहान्यूर्ध्वा सन्ति तथा युष्माकमपि सन्तु ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (स्तुतासः) प्रशंसिता (नः) अस्मान् (मरुतः) बलिष्ठा विद्वांसः (मृळयन्तु) सुखयन्तु (उत) अपि (स्तुतः) प्रशंसां प्राप्तः (मघवा) पूजितुं योग्यः (शम्भविष्ठः) सुखस्यः भावयितृतमः (ऊर्ध्वा) उत्कृष्टानि (नः) अस्माकम् (सन्तु) (कोम्या) प्रशंसनीयानि (वनानि) भजनीयानि (अहानि) दिनानि (विश्वा) सर्वाणि (मरुतः) शूरवीराः (जिगीषा) जेतुमिष्टानि ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्येषु यादृशा गुणकर्मस्वभावास्स्युः तेषां तादृश्येव प्रशंसा कार्या त एव प्रशंसिता भवेयुर्येऽन्येषां सुखोन्नतये प्रयतेरन् त एव सेवनीयाः स्युर्य इह पापाचरणं विहाय धार्मिका भवेयुस्ते प्रतिदिनं विद्यासुशिक्षावृद्धय उद्योगिनः स्युः ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी ज्यांच्या अंगी जसे गुण, कर्म, स्वभाव असतात त्याची तशीच प्रशंसा करावी व जे प्रशंसनीय असतात ते इतरांच्या सुखोन्नतीसाठी प्रयत्न करतात व तेच स्वीकारणीय असतात. जे पापाचरण सोडून धार्मिक बनतात त्यांनी प्रत्येक दिवशी विद्या व सुशिक्षणाची वाढ करून उद्योगी बनावे. ॥ ३ ॥