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इन्द्रः॑ सहस्र॒दाव्नां॒ वरु॑णः॒ शंस्या॑नाम्। क्रतु॑र्भवत्यु॒क्थ्यः॑॥

English Transliteration

indraḥ sahasradāvnāṁ varuṇaḥ śaṁsyānām | kratur bhavaty ukthyaḥ ||

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Pad Path

इन्द्रः॑। स॒ह॒स्र॒ऽदाव्ना॑म्। वरु॑णः। शंस्या॑नाम्। क्रतुः॑। भ॒व॒ति॒। उ॒क्थ्यः॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:17» Mantra:5 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:32» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:4» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर इन्द्र और वरुण किस प्रकार के हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

Word-Meaning: - सब मनुष्यों को योग्य है कि जो (इन्द्र) अग्नि बिजुली और सूर्य्य (हि) जिस कारण (सहस्रदाव्नाम्) असंख्यात धन के देनेवालों के मध्य में (क्रतुः) उत्तमता से कार्य्यों को सिद्ध करनेवाले (भवति) होते हैं, तथा जो (वरुणः) जल, पवन और चन्द्रमा भी (शंस्यानाम्) प्रशंसनीय पदार्थों में उत्तमता से कार्य्यों के साधक हैं, इससे जानना चाहिये कि उक्त बिजुली आदि पदार्थ (उक्थ्यः) साधुता के साथ विद्या की सिद्धि करने में उत्तम हैं॥५॥
Connotation: - पहिले मन्त्र से इस मन्त्र में हि इस पद की अनुवृत्ति है। जितने पृथिवी आदि वा अन्न आदि पदार्थ दान आदि के साधक हैं, उनमें अग्नि विद्युत् और सूर्य्य मुख्य हैं, इससे सबको चाहिये कि उनके गुणों का उपदेश करके उनकी स्तुति वा उनका उपदेश सुनें और करें, क्योंकि जो पृथिवी आदि पदार्थों में जल वायु और चन्द्रमा अपने-अपने गुणों के साथ प्रशंसा करने और जानने योग्य हैं, वे क्रियाकुशलता में संयुक्त किये हुए उन क्रियाओं की सिद्धि करानेवाले होते हैं॥५॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनः कथंभूताविन्द्रावरुणावित्युपदिश्यते।

Anvay:

मनुष्यैर्य इन्द्रो हि सहस्रदाव्नां मध्ये क्रतुर्भवति वरुणश्च शंस्यानां मध्ये क्रतुर्भवति तस्मादयमुक्थ्योऽस्तीति बोध्यम्॥५॥

Word-Meaning: - (इन्द्रः) अग्निर्विद्युत् सूर्य्यो वा (सहस्रदाव्नाम्) यः सहस्रस्यासंख्यातस्य धनस्य दातॄणां मध्ये साधकतमः। अत्र आतो मनिन्० (अष्टा०३.२.७४) अनेन वनिप्प्रत्ययः। (वरुणः) जलं वायुश्चन्द्रो वा (शंस्यानाम्) प्रशंसितुमर्हाणां पदार्थानां मध्ये स्तोतुमर्हः (क्रतुः) करोति कार्य्याणि येन सः। कृञः कतुः। (उणा०१.७७) अनेन ‘कृञ’धातोः कतुः प्रत्ययः। (भवति) वर्त्तते (उक्थ्यः) यानि विद्यासिद्ध्यर्थे वक्तुं वाचयितुं वार्हाणि ते साधुः॥५॥
Connotation: - अत्र पूर्वस्मान्मन्त्राद्धेरनुवृत्तिः। यतो यावन्ति पृथिव्यादीन्यन्नादिदानसाधननिमित्तानि सन्ति, तेषां मध्येऽग्निविद्युत्सूर्य्या मुख्या वर्त्तन्ते, ये चैतेषां मध्ये जलवायुचन्द्रास्तत्तद्गुणैः प्रशस्या ज्ञातव्याः सन्तीति विदित्वा कर्मसु सम्प्रयोजिताः सन्तः क्रियासिद्धिहेतवो भवन्तीति॥५॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - पहिल्या मंत्राप्रमाणे या मंत्रात ‘हि’ या पदाची अनुवृत्ती आहे. जितके पृथ्वी इत्यादी व अन्न इत्यादी पदार्थ दानाचे साधन आहेत, त्यामध्ये अग्नी, विद्युत व सूर्य मुख्य आहेत, त्यांचे गुण जाणून प्रशंसा करावी. त्यात जल, वायू, चंद्र हे प्रशंसा करण्यायोग्य व जाणण्यायोग्य आहेत ते क्रियेमध्ये संप्रयोजित करून क्रियांची सिद्धी करविणारे आहेत. ॥ ५ ॥