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प्रति॒ प्र या॑हीन्द्र मी॒ळ्हुषो॒ नॄन्म॒हः पार्थि॑वे॒ सद॑ने यतस्व। अध॒ यदे॑षां पृथुबु॒ध्नास॒ एता॑स्ती॒र्थे नार्यः पौंस्या॑नि त॒स्थुः ॥

English Transliteration

prati pra yāhīndra mīḻhuṣo nṝn mahaḥ pārthive sadane yatasva | adha yad eṣām pṛthubudhnāsa etās tīrthe nāryaḥ pauṁsyāni tasthuḥ ||

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Pad Path

प्रति॑। प्र। या॒हि॒। इ॒न्द्र॒। मी॒ळ्हुषः॑। नॄन्। म॒हः। पार्थि॑वे। सद॑ने। य॒त॒स्व॒। अध॑। यत्। ए॒षा॒म्। पृ॒थु॒ऽबु॒ध्नासः॑। एताः॑। ती॒र्थे। न। अ॒र्यः। पौंस्या॑नि। त॒स्थुः ॥ १.१६९.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:169» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:9» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (इन्द्र) प्रयत्न करनेवाले ! आप (यत्) जो (पृथुबुध्नासः) विस्तारयुक्त अन्तरिक्षवाले जन (एताः) ये स्त्रीजन और (एषाम्) इनके (पौंस्यानि) बल (तीर्थे) जिससे समुद्ररूप जल समूहों को तरें उस नौका में (अर्यः) वैश्य के (न) समान (तस्थुः) स्थिर होते हैं उन (मीढुषः) सुखों से सींचनेवाले (नॄन्) अग्रगामी मनुष्यों को (प्रति) (प्र, याहि) प्राप्त होओ (अध) इसके अनन्तर (महः) बड़े (पार्थिवे) पृथिवी में विदित (सदने) घर में (यतस्व) यत्न करो ॥ ६ ॥
Connotation: - जो पुरुष और जो स्त्री ब्रह्मचर्य से बलों को बढ़ाकर आप्त धर्म्मात्मा शास्त्रवक्ता सज्जनों की सेवा करते हैं, वे पुरुष विद्वान् और वे स्त्रियाँ विदुषी होती हैं ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे इन्द्र त्वं यद्ये पृथुबुध्नासो जना एताः स्त्रियश्चैषां पौंस्यानि तीर्थे समुद्रादितारिकायां नाव्यर्य्यो न तस्थुः तान् मीढुषो नॄन् प्रति प्रयाह्यध महः पार्थिवे सदने यतस्व ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (प्रति) (प्र) (याहि) गच्छ (इन्द्र) प्रयतमान (मीढुषः) सुखैः सेचकान् (नॄन्) नायकान् (महः) महति (पार्थिवे) पृथिव्यां विदिते (सदने) गृहे (यतस्व) यतमानो भव (अध) अनन्तरम् (यत्) ये (एषाम्) (पृथुबुध्नासः) विस्तीर्णान्तरिक्षाः (एताः) (तीर्थे) तरन्ति येन तस्मिन् (न) इव (अर्यः) वैश्यः (पौंस्यानि) बलानि (तस्थुः) तिष्ठन्ति ॥ ६ ॥
Connotation: - ये पुरुषा याः स्त्रियश्च ब्रह्मचर्येण बलानि वर्द्धयित्वाऽऽप्तान् सज्जनान् सेवन्ते ते ताश्च विद्वांसो विदुष्यश्च जायन्ते ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे पुरुष व ज्या स्त्रिया ब्रह्मचर्याने बल वाढवून आप्त धर्मात्मा शास्त्रवक्त्या सज्जनांची सेवा करतात ते पुरुष विद्वान व स्त्रिया विदुषी होतात. ॥ ६ ॥