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ए॒ष व॒: स्तोमो॑ मरुत इ॒यं गीर्मा॑न्दा॒र्यस्य॑ मा॒न्यस्य॑ का॒रोः। एषा या॑सीष्ट त॒न्वे॑ व॒यां वि॒द्यामे॒षं वृ॒जनं॑ जी॒रदा॑नुम् ॥

English Transliteration

eṣa vaḥ stomo maruta iyaṁ gīr māndāryasya mānyasya kāroḥ | eṣā yāsīṣṭa tanve vayāṁ vidyāmeṣaṁ vṛjanaṁ jīradānum ||

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Pad Path

ए॒षः। वः॒। स्तोमः॑। म॒रु॒तः॒। इ॒यम्। गीः। मा॒न्दा॒र्यस्य॑। मा॒न्यस्य॑। का॒रोः। आ। इ॒षा। या॒सी॒ष्ट॒। त॒न्वे॑। व॒याम्। वि॒द्याम॑। इ॒षम्। वृ॒जन॑म्। जी॒रऽदा॑नुम् ॥ १.१६८.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:168» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:7» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (मरुतः) श्रेष्ठ विद्वानो ! जो (एषः) यह (वः) तुम्हारा (स्तोमः) प्रश्नोत्तररूप आलाप कथन (मान्दार्यस्य) सबके लिये आनन्द देनेवाले उत्तम (मान्यस्य) जानने योग्य (कारोः) क्रियाकुशल सज्जन की जो (इयम्) यह (गीः) सत्यप्रिया वाणी और जो (इषा) इच्छा के साथ (तन्वे) शरीर सुख के लिये (आ, यासीष्ट) प्राप्त हो उससे (दयाम्) हम लोग (इषम्) अन्न (वृजनम्) शत्रुओं को दुःख देनेवाले बल और (जीरदानुम्) जीवों की दया को (विद्याम) प्राप्त होवें ॥ १० ॥
Connotation: - जो समस्त विद्या की स्तुति और प्रशंसा करने और आप्तवाक् अर्थात् धर्मात्मा विद्वानों की वाणियों में रहने तथा जीवों की दया से युक्त सज्जन पुरुष हैं, वे सभों के सुखों को उत्पन्न करानेवाले होते हैं ॥ १० ॥इस सूक्त में पवनों के दृष्टान्त से विद्वानों के गुणों का वर्णन होने से इसके अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥यह एकसौ अरसठवाँ सूक्त और सातवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मरुतो य एष वस्स्तोमो मान्दार्यस्य मान्यस्य कारोर्येयङ्गीर्येषा तन्वे आयासीष्ट तया वयामिषं वृजनं जीरदानुं विद्याम ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (एषः) (वः) युष्माकम् (स्तोमः) प्रश्नोत्तराख्य आलापः (मरुतः) विद्वद्वराः (इयम्) (गीः) सत्यप्रिया वाक् (मान्दार्यस्य) सर्वेभ्य आनन्दप्रदस्योत्तमस्य (मान्यस्य) ज्ञातुं योग्यस्य (कारोः) क्रियाकुशलस्य (आ) (इषा) इच्छया (यासीष्ट) प्राप्नुयात् (तन्वे) शरीरसुखाय (वयाम्) (विद्याम) प्राप्ता भवेम (इषम्) अन्नम् (वृजनम्) शत्रुनिकन्दनं बलम् (जीरदानुम्) जीवदयाम् ॥ १० ॥
Connotation: - ये सकलविद्यास्तावका आप्तवाचो जीवदयाविशिष्टाः सन्ति ते सर्वेषां सुखजनका भवन्तीति ॥ १० ॥अत्र वायुदृष्टान्तेन सज्जनगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥इत्यष्टषष्ट्युत्तरं शततमं सूक्तं सप्तमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे संपूर्ण विद्येची स्तुती व प्रशंसा करणारे असतात, आप्तवाक् अर्थात धर्मात्मा विद्वानांच्या वाणीत वसतात तसेच जीवाबद्दल दया बाळगणारे असतात ते सर्वांना सुख देतात. ॥ १० ॥