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य॒ज्ञाय॑ज्ञा वः सम॒ना तु॑तु॒र्वणि॒र्धियं॑धियं वो देव॒या उ॑ दधिध्वे। आ वो॒ऽर्वाच॑: सुवि॒ताय॒ रोद॑स्योर्म॒हे व॑वृत्या॒मव॑से सुवृ॒क्तिभि॑: ॥

English Transliteration

yajñā-yajñā vaḥ samanā tuturvaṇir dhiyaṁ-dhiyaṁ vo devayā u dadhidhve | ā vo rvācaḥ suvitāya rodasyor mahe vavṛtyām avase suvṛktibhiḥ ||

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Pad Path

य॒ज्ञाऽय॑ज्ञा। वः॒। स॒म॒ना। तु॒तु॒र्वणिः॑। धिय॑म्ऽधियम्। वः॒। दे॒व॒ऽयाः। ऊँ॒ इति॑। द॒धि॒ध्वे॒। आ। वः॒। अ॒र्वाचः॑। सु॒वि॒ताय॑। रोद॑स्योः। म॒हे। व॒वृ॒त्या॒म्। अव॑से। सु॒वृ॒क्तिऽभिः॑ ॥ १.१६८.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:168» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:6» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एकसौ अरसठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके आरम्भ में पवन के दृष्टान्त से सज्जनों के गुणों का वर्णन करते हैं ।

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! जैसे (देवयाः) दिव्य गुणों को जो प्राप्त होते वे प्राण वायु (वः) तुम्हारे (धियंधियम्) काम-काम को धारण करते वैसे (उ) ही तुम उनको (दधिध्वे) धारण करो। जैसे उन पवनों की (यज्ञायज्ञा) यज्ञ-यज्ञ में और (समना) समान व्यवहारों में (तुतुर्वणिः) शीघ्र गति है वैसे (वः) तुम्हारी गति हो जैसे हम लोग (रोदस्योः) आकाश और पृथिवी सम्बन्धी (सुविताय) ऐश्वर्य के लिये और (महे) अत्यन्त (अवसे) रक्षा के लिये (वः) तुम्हारे (सुवृक्तिभिः) सुन्दर त्यागों के साथ (अर्वाचः) नीचे आने-जानेवाले पवनों को (आ, ववृत्याम्) अच्छे वर्त्ताने के लिये चाहते हैं वैसे तुम चाहो ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पवन नियम से अनेकविध गतिमान् होकर विश्व का धारण करते हैं, वैसे विद्वान् जन विद्या और उत्तम शिक्षायुक्त होकर विद्यार्थियों को धारण करें, जिससे असंख्य ऐश्वर्य प्राप्त हों ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ वायुदृष्टान्तेन सज्जनगुणानाह ।

Anvay:

हे विद्वांसो यथा देवयाः प्राणा वो धियंधियं दधति तथा उ यूयं तान् दधिध्वे। यथा तेषां यज्ञायज्ञा समना तुतुर्वणिरस्ति तथा वोऽस्तु। यथा वयं रोदस्योः सुविताय महेऽवसे वः सुवृक्तिभिरर्वाचो वायूनाववृत्यामिच्छामस्तथा यूयमिच्छथ ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (यज्ञायज्ञा) यज्ञेयज्ञे (वः) युष्माकम् (समना) तुल्ये (तुतुर्वणिः) शीघ्रगतिः (धियंधियम्) कर्मकर्म (वः) युष्माकम् (देवयाः) ये देवान् दिव्यान् गुणान् यान्ति ते (उ) (दधिध्वे) (आ) (वः) युष्माकम् (अर्वाचः) (सुविताय) ऐश्वर्याय (रोदस्योः) (महे) (ववृत्याम्) (अवसे) (सुवृक्तिभिः) सुष्ठुवर्जनैस्सह ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा वायवो नियमेनाऽनेकविधगतयो भूत्वा विश्वं धरन्ति तथा विद्वांसो विद्याशिक्षायुक्ता भूत्वा विद्यार्थिनो धरन्तु। येनाऽसंख्यैश्वर्य्यं प्राप्तं स्यात् ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात वायूच्या दृष्टान्ताने विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे याच्या अर्थाची मागील सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे वायू अनेक प्रकारे गतिमान बनून विश्वाला धारण करतात तसे विद्वान लोकांनी विद्या व उत्तम शिक्षणाने विद्यार्थ्यांना धारण करावे. ज्यामुळे असंख्य ऐश्वर्य प्राप्त व्हावे. ॥ १ ॥