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यू॒यं न॑ उग्रा मरुतः सुचे॒तुनारि॑ष्टग्रामाः सुम॒तिं पि॑पर्तन। यत्रा॑ वो दि॒द्युद्रद॑ति॒ क्रिवि॑र्दती रि॒णाति॑ प॒श्वः सुधि॑तेव ब॒र्हणा॑ ॥

English Transliteration

yūyaṁ na ugrā marutaḥ sucetunāriṣṭagrāmāḥ sumatim pipartana | yatrā vo didyud radati krivirdatī riṇāti paśvaḥ sudhiteva barhaṇā ||

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Pad Path

यू॒यम्। नः॒। उ॒ग्राः॒। म॒रु॒तः॒। सु॒ऽचे॒तुना॑। अरि॑ष्टऽग्रामाः। सु॒ऽम॒तिम्। पि॒प॒र्त॒न॒। यत्र॑। वः॒। दि॒द्युत्। रद॑ति। क्रिविः॑ऽदती। रि॒णाति॑। प॒श्वः। सुधि॑ताऽइव। ब॒र्हणा॑ ॥ १.१६६.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:166» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:2» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (उग्राः) तीव्रगुणकर्मस्वभावयुक्त (मरुतः) पवनों के समान शीघ्रता करनेवाले विद्वानो ! (यूयम्) तुम (अरिष्टग्रामाः) जिनसे ग्राम के ग्राम अहिंसक होते अर्थात् पशु आदि जीवों को जिन्होंने ताड़ना देना छोड़ दिया ऐसे होते हुए (नः) हमारी (सुमतिम्) प्रशस्त उत्तम बुद्धि को (सुचेतुना) सुन्दर विज्ञान से (पिपर्त्तन) पूरी करो। (यत्र) जहाँ (क्रिविर्दती) हिंसा करने रूप दाँत हैं जिसके वह (वः) तुम्हारे सम्बन्ध से (दिद्युत्) अत्यन्त प्रकाशमान बिजुली (रदति) पदार्थों को छिन्न-भिन्न करती है वहाँ (सुधितेव) अच्छे प्रकार धारण की हुई वस्तु के समान (बर्हणा) बढ़ती हुई (पश्वः) पशुओं को अर्थात् पशुभावों को (रिणाति) प्राप्त होती जैसे पशु, घोड़े, बैल आदि रथादिकों को जोड़े हुए उनको चलाते हैं वैसे उन रथों को अति वेग से चलाती है ॥ ६ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। शिल्पव्यवहार से सिद्ध की बिजुलीरूप आग घोड़े आदि पशुओं के समान कार्य सिद्ध करनेवाली होती है, उसकी क्रिया को जाननेवाले विद्वान् अन्य जनों को भी उस विद्युद्विद्या से कुशल करें ॥ ६ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे उग्रा मरुतो विद्वांसो यूयमरिष्टग्रामाः सन्तो नः सुमतिं सुचेतुना पिपर्त्तन। यत्र क्रिविर्दती वो विद्युद्रदति तत्र सुधितेव बर्हणा सा पश्वो रिणाति ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (यूयम्) (नः) अस्माकम् (उग्राः) तीव्रगुणकर्मस्वभावाः (मरुतः) मरुद्वत्सुचेष्टाः (सुचेतुना) सुष्ठु विज्ञानेन (अरिष्टग्रामाः) अहिंसका ग्रामा येभ्यस्ते (सुमतिम्) प्रशस्तां प्रज्ञाम् (पिपर्तन) पूरयन्तु (यत्र) अत्र ऋचितु० इत्यनेन दीर्घः। (वः) युष्माकम् (दिद्युत्) देदीप्यमाना विद्युत् (रदति) विलिखति (क्रिविर्दती) क्रिविर्हिंसनमेव दन्ता यस्याः सा (रिणाति) गच्छति (पश्वः) पशून् (सुधितेव) सुष्ठु धृतेव (बर्हणा) वर्द्धते या सा ॥ ६ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। शिल्पव्यवहारसंसाधिता विद्युदश्वादिपशुवत्कार्यसाधिका भवति। तस्याः क्रियावेत्तारो विद्वांसोऽन्यानपि तद्विद्याकुशलान् संपादयन्तु ॥ ६ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. शिल्पव्यवहाराने सिद्ध केलेला विद्युत अग्नी घोडा इत्यादी पशूप्रमाणे कार्य सिद्ध करणारा आहे. ती क्रिया जाणणाऱ्या विद्वानांनी इतर लोकांनाही विद्युत विद्येमध्ये निपुण करावे. ॥ ६ ॥