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म॒हान्तो॑ म॒ह्ना वि॒भ्वो॒३॒॑ विभू॑तयो दूरे॒दृशो॒ ये दि॒व्या इ॑व॒ स्तृभि॑:। म॒न्द्राः सु॑जि॒ह्वाः स्वरि॑तार आ॒सभि॒: सम्मि॑श्ला॒ इन्द्रे॑ म॒रुत॑: परि॒ष्टुभ॑: ॥

English Transliteration

mahānto mahnā vibhvo vibhūtayo dūredṛśo ye divyā iva stṛbhiḥ | mandrāḥ sujihvāḥ svaritāra āsabhiḥ sammiślā indre marutaḥ pariṣṭubhaḥ ||

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Pad Path

म॒हान्तः॑। म॒ह्ना। वि॒ऽभ्वः॑। विऽभू॑तयः। दू॒रे॒ऽदृशः॑। ये। दि॒व्याःऽइ॑व। स्तृऽभिः॑। म॒न्द्राः। सु॒ऽजि॒ह्वाः। स्वरि॑तारः। आ॒सऽभिः॑। सम्ऽमि॑श्लाः। इन्द्रे॑। म॒रुतः॑। प॒रि॒ऽस्तुभः॑ ॥ १.१६६.११

Rigveda » Mandal:1» Sukta:166» Mantra:11 | Ashtak:2» Adhyay:4» Varga:3» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो विद्वान् जन (मह्ना) अपनी महिमा से (महान्तः) बड़े (विभ्वः) समर्थ (विभूतयः) नाना प्रकार के ऐश्वर्यों को देनेवाले (दूरेदृशः) दूरदर्शी (इन्द्रे) बिजुली के विषय में (संमिश्लाः) अच्छे मिले हुए (स्तृभिः) आच्छादन करने संसार पर छाया करनेहारे तारागणों के साथ वर्त्तमान (परिष्टुभः) सब ओर से धारण करनेहारे (मरुतः) पवनों के समान तथा (दिव्या इव) सूर्यस्थ किरणों के समान (मन्द्राः) कमनीय मनोहर (सुजिह्वाः) सत्य वाणी बोलनेवाले (स्वरितारः) पढ़ाने और उपदेश करनेवाले होते हुए (आसभिः) मुखों से पढ़ाते और उपदेश करते हैं वे निर्मल विद्यावान् होते हैं ॥ ११ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पवन समस्त मूर्त्तिमान् पदार्थों को धारण करनेवाले बिजुली के संयोग से प्रकाशक और सर्वत्र व्याप्त है, वैसे विद्वान् जन मूर्त्तिमान् द्रव्यों की विद्या के उपदेष्टा विद्या और विद्यार्थियों के संयोग के विशेष ज्ञान को देनेवाले सकल विद्या और शुभ आचरणों में व्याप्त होते हुए मनुष्यों में उत्तम होते हैं ॥ ११ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

ये विद्वांसो मह्ना महान्तो विभ्वो विभूतयो दूरेदृश इन्द्रे संमिश्ला स्तृभिः सह वर्त्तमानाः परिष्टुभो मरुतो दिव्याइव मन्द्राः सुजिह्वाः स्वरितारः सन्त आसभिरध्यापयन्त्युपदिशन्ति च ते निर्मलविद्या जायन्ते ॥ ११ ॥

Word-Meaning: - (महान्तः) परिमाणेनाधिकाः (मह्ना) स्वमहिम्ना (विभ्वः) समर्थाः (विभूतयः) विविधैश्वर्यप्रदाः (दूरेदृशः) दूरे पश्यन्ति ते (ये) (दिव्याइव) यथा सूर्यस्थाः किरणास्तथा (स्तृभिः) आच्छादितैर्नक्षत्रैः (मन्द्राः) कामयमानाः (सुजिह्वाः) सत्यवाचः (स्वरितारः) अध्यापका उपदेष्टारो वा (आसभिः) मुखैः (संमिश्लाः) सम्यक् मिश्रिताः। अत्र कपिलकादित्वाल्लत्वम्। (इन्द्रे) विद्युति (मरुतः) वायव इव (परिष्टुभः) सर्वतो धर्त्तारः ॥ ११ ॥
Connotation: - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। यथा वायवः सर्वमूर्त्तद्रव्यधर्त्तारो विद्युत्संयुक्तप्रकाशका व्याप्ताः सन्ति तथा विद्वांसो मूर्त्तद्रव्यविद्योपदेष्टारो विद्याविद्यार्थिसंयुक्तविज्ञानदातारः सकलविद्याशुभाचरणव्यापिनः सन्तो नरोत्तमा भवन्ति ॥ ११ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जसे वायू संपूर्ण पदार्थांना धारण करणाऱ्या विद्युतच्या संयोगाने प्रकाशक असून सर्वत्र व्याप्त आहेत. तसे विद्वान लोक मूर्तिमान द्रव्याच्या विद्येचे उपदेष्टे, विद्या व विद्यार्थ्यांच्या संयोगाने विशेष ज्ञान देणारे, संपूर्ण विद्या व शुभ आचरणात व्याप्त होणारे असून, माणसांमध्ये उत्तम असतात. ॥ ११ ॥