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भूरि॑ चकर्थ॒ युज्ये॑भिर॒स्मे स॑मा॒नेभि॑र्वृषभ॒ पौंस्ये॑भिः। भूरी॑णि॒ हि कृ॒णवा॑मा शवि॒ष्ठेन्द्र॒ क्रत्वा॑ मरुतो॒ यद्वशा॑म ॥

English Transliteration

bhūri cakartha yujyebhir asme samānebhir vṛṣabha pauṁsyebhiḥ | bhūrīṇi hi kṛṇavāmā śaviṣṭhendra kratvā maruto yad vaśāma ||

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Pad Path

भूरि॑। च॒क॒र्थ॒। युज्ये॑भिः। अ॒स्मे इति॑। स॒मा॒नेभिः॑। वृ॒ष॒भ॒। पौंस्ये॑भिः। भूरी॑णि। हि। कृ॒णवा॑म। श॒वि॒ष्ठ॒। इन्द्र॑। क्रत्वा॑। म॒रु॒तः॒। यत्। वशा॑म ॥ १.१६५.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:165» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:25» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:23» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (वृषभ) उपदेश की वर्षा करनेवाले ! जैसे आप (समानेभिः) समान तुल्य (युज्येभिः) योग्य कर्मों वा (पौंस्येभिः) पुरुषार्थों से (अस्मे) हमारे लिये (भूरि) बहुत सुख (चकर्थ) करते हैं उन आपके लिये हम लोग (भूरीणि) बहुत सुख (कृणवाम) करें। हे (शविष्ठ) बलवान् (इन्द्र) सबको सुख देनेवाले ! जैसे आप (क्रत्वा) उत्तम बुद्धि से हम लोगों को विद्वान् करते हैं वैसे हम लोग आपकी सेवा करें। हे (मरुतः) विद्वान् मनुष्यो ! तुम (यत्) जिसकी कामना करो उसकी हम भी (वशाम, हि) कामना ही करें ॥ ७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे इस संसार में विद्वान् जन पुरुषार्थ से सबको विद्या और उत्तम शिक्षा से युक्त करते हैं, वैसे इनको सब सत्कारयुक्त करें। जो सब विद्याओं के पढ़ाने और सबके सुख को चाहनेवाले हों, वे पढ़ाने और उपदेश करने में प्रधान हों ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे वृषभ यथा त्वं समानेभिर्युज्येभिः पौंस्येभिरस्मे भूरि सुखं चकर्थ। तस्मै तुभ्यं वयं भूरीणि सुखानि कृणवाम। हे शविष्ठेन्द्र यथा त्वं क्रत्वाऽस्मान् विदुषः करोषि तथा वयं तव सेवां कुर्याम। हे मरुतो यूयं यत् कामयिष्यध्वे तद्वयमपि वशाम हि कामयेमहि ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (भूरि) बहु (चकर्थ) करोषि (युज्येभिः) योजनीयैः कर्मभिः (अस्मे) अस्मभ्यम् (समानेभिः) तुल्यैः (वृषभ) उपदेशवर्षक (पौंस्येभिः) पुरुषार्थैः (भूरीणि) बहूनि (हि) किल (कृणवाम) कुर्याम। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (शविष्ठ) बलिष्ठ (इन्द्र) सर्वसुखप्रद (क्रत्वा) प्रज्ञया (मरुतः) विद्वांसो मनुष्याः (यत्) यम् (वशाम) कामयेमहि ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथेह विद्वांसो पुरुषार्थेन सर्वान् विद्यासुशिक्षायुक्तान् कुर्वन्ति तथैतान् सर्वे सत्कुर्युः। ये सर्वविद्याऽध्यापकाः सर्वेषां सुखं कामुकाः स्युस्तेऽध्यापनोपदेशयोः प्रधाना भवन्तु ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. या जगात विद्वान लोक पुरुषार्थाने सर्वांना विद्या व उत्तम शिक्षणाने युक्त करतात. त्यांचा सर्वांनी सत्कार करावा. जे सर्व विद्येचे अध्यापन व सर्वांच्या सुखाची कामना करणारे असतात, ते अध्यापन व उपदेश यात मुख्य असावेत. ॥ ७ ॥