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य॒ज्ञेन॑ य॒ज्ञम॑यजन्त दे॒वास्तानि॒ धर्मा॑णि प्रथ॒मान्या॑सन्। ते ह॒ नाकं॑ महि॒मान॑: सचन्त॒ यत्र॒ पूर्वे॑ सा॒ध्याः सन्ति॑ दे॒वाः ॥

English Transliteration

yajñena yajñam ayajanta devās tāni dharmāṇi prathamāny āsan | te ha nākam mahimānaḥ sacanta yatra pūrve sādhyāḥ santi devāḥ ||

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Pad Path

य॒ज्ञेन॑। य॒ज्ञम्। अ॒य॒ज॒न्त॒। दे॒वाः। तानि॑। धर्मा॑णि। प्र॒थ॒मानि॑। आ॒सन्। ते। ह॒। नाक॑म्। म॒हि॒मानः॑। स॒च॒न्त॒। यत्र॑। पूर्वे॑। सा॒ध्याः। सन्ति॑। दे॒वाः ॥ १.१६४.५०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:164» Mantra:50 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:23» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:50


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (देवाः) विद्वान् जन (यज्ञेन) अग्नि आदि दिव्य पदार्थों के समूह में (यज्ञम्) धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के व्यवहार को (अयजन्त) मिलते प्राप्त होते हैं और जो ब्रह्मचर्य आदि (धर्माणि) धर्म (प्रथमानि) प्रथम (आसन्) हैं (तानि) उनका सेवन करते और कराते हैं (ते, ह) वे ही (यत्र) जहाँ (पूर्वे) पहिले अर्थात् जिन्होंने विद्या पढ़ ली (साध्याः) तथा औरों को विद्यासिद्धि के लिये सेवन करने योग्य (देवाः) विद्वान् जन (सन्ति) हैं वहाँ (महिमानः) सत्कार को प्राप्त हुए (नाकम्) दुःखरहित सुख को (सचन्त) प्राप्त होते हैं ॥ ५० ॥
Connotation: - जो लोग प्रथमावस्था में ब्रह्मचर्य से उत्तम उत्तम शिक्षा आदि सेवन करने योग्य कामों को प्रथम करते हैं, वे आप्त अर्थात् विद्यादि गुण, धर्म्मादि कार्यों को साक्षात् किये हुए जो विद्वान्, उनके समान विद्वान् होकर विद्यानन्द को प्राप्त होकर सर्वत्र सत्कार को प्राप्त होते हैं ॥ ५० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनर्विद्वद्विषयमाह ।

Anvay:

ये देवा यज्ञेन यज्ञमयजन्त यानि ब्रह्मचर्यादीनि धर्माणि प्रथमान्यासन्तानि सेवन्ते सेवयन्ति च ते ह यत्र पूर्वे साध्या देवाः सन्ति तत्र महिमानः सन्तो नाकं सचन्त ॥ ५० ॥

Word-Meaning: - (यज्ञेन) अग्न्यादिदिव्यपदार्थसमूहेन (यज्ञम्) धर्मार्थकाममोक्षव्यवहारम् (अयजन्त) यजन्ति संगच्छन्ते (देवाः) विद्वांसः (तानि) (धर्माणि) (प्रथमानि) आदिमानि ब्रह्मचर्य्यादीनि (आसन्) सन्ति (ते) (ह) किल (नाकम्) दुःखविरहं सुखम् (महिमानः) पूज्यतां प्राप्नुवन्तः (सचन्त) सचन्ते लभन्ते (यत्र) यस्मिन् (पूर्वे) अधीतविद्याः (साध्याः) अन्यैर्विद्यार्थं संसेवितुमर्हाः (सन्ति) वर्त्तन्ते (देवाः) विद्वांसः ॥ ५० ॥
Connotation: - ये प्रथमे वयसि ब्रह्मचर्यसुशिक्षादीनि सेवितव्यानि कर्माणि प्रथमं कुर्वन्ति ते आप्तविद्वद्वद्विद्वांसो भूत्वा विद्यानन्दं प्राप्य सर्वत्र सत्कृता भवन्ति ॥ ५० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे लोक प्रथमावस्थेत ब्रह्मचर्याचे पालन करून उत्तम शिक्षण घेण्याचे कार्य करतात, ते आप्त अर्थात विद्वान बनून विद्यानंद प्राप्त करतात. त्यांचा सर्वत्र सत्कार केला जातो. ॥ ५० ॥