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द्वाद॑शारं न॒हि तज्जरा॑य॒ वर्व॑र्ति च॒क्रं परि॒ द्यामृ॒तस्य॑। आ पु॒त्रा अ॑ग्ने मिथु॒नासो॒ अत्र॑ स॒प्त श॒तानि॑ विंश॒तिश्च॑ तस्थुः ॥

English Transliteration

dvādaśāraṁ nahi taj jarāya varvarti cakram pari dyām ṛtasya | ā putrā agne mithunāso atra sapta śatāni viṁśatiś ca tasthuḥ ||

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Pad Path

द्वाद॑शऽअरम्। न॒हि। तत्। जरा॑य। वर्व॑र्ति। च॒क्रम्। परि॑। द्याम्। ऋ॒तस्य॑। आ। पु॒त्राः। अ॒ग्ने॒। मि॒थु॒नासः॑। अत्र॑। स॒प्त। श॒तानि॑। विं॒श॒तिः। च॒। त॒स्थुः॒ ॥ १.१६४.११

Rigveda » Mandal:1» Sukta:164» Mantra:11 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:16» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब विशेष कर काल की व्यवस्था को कहते हैं ।

Word-Meaning: - हे (अग्ने) विद्वान् ! तू (अत्र) इस संसार में जो (द्वादशारम्) जिसके बारह अङ्ग हैं वह (चक्रम्) चक्र के समान वर्त्तमान संवत्सर (द्याम्) प्रकाशमान सूर्य के (परि, वर्वर्त्ति) सब ओर से निरन्तर वर्त्तमान है (तत्) वह (जराय) हानि के लिये (नहि) नहीं होता है जो इस संसार में (ऋतस्य) सत्य कारण से (सप्त) सात (शतानि) सौ (विंशतिः) बीस (च) भी (मिथुनासः) संयोग से उत्पन्न हुए (पुत्राः) पुत्रों के समान वर्त्तमान तत्त्व विषय (आ, तस्थुः) अपने अपने विषयों में लगे हैं, उनको जान ॥ ११ ॥
Connotation: - काल अनन्त अपरिणामी और विभु वर्त्तमान है, न उसकी कभी उत्पत्ति है और न नाश है। इस जगत् के कारण में सात सौ बीस जो तत्त्व हैं, वे मिलके स्थूल ईश्वर के निर्माण किए हुए योग से उत्पन्न हुए हैं, इनका कारण अज और नित्य है, जबतक अलग अलग इन तत्त्वों को प्रत्यक्ष में न जाने तबतक विद्या की वृद्धि के लिये मनुष्य यत्न किया करे ॥ ११ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विशेषतः कालव्यवस्थामाह ।

Anvay:

हे अग्ने विद्वँस्त्वमत्र यो द्वादशारं चक्रं द्यां परिवर्वर्त्ति तज्जराय नहि भवति। येऽत्र ऋतस्य कारणस्य सकाशात्सप्तशतानि विंशतिश्च मिथुनासः पुत्रास्तत्त्वविषया आतस्थुस्तान् विजानीहि ॥ ११ ॥

Word-Meaning: - (द्वादशारम्) द्वादश अरा मासा अवयवा यस्य तं संवत्सरम् (नहि) (तत्) (जराय) हानये (वर्वर्त्ति) भृशं वर्त्तते (चक्रम्) चक्रवद्वर्त्तमानम् (परि) सर्वतः (द्याम्) द्योतमानं सूर्य्यम् (ऋतस्य) सत्यस्य कारणस्य (आ) (पुत्राः) तनयाइव (अग्ने) विद्वन् (मिथुनासः) संयोगेनोत्पन्नाः (अत्र) अस्मिन् संसारे (सप्त) (शतानि) (विंशतिः) (च) (तस्थुः) तिष्ठन्ति ॥ ११ ॥
Connotation: - कालोऽनन्तोऽपरिणामी विभुश्च वर्त्तते। नैव तस्य कदाचिदुत्पत्तिर्नाशो वाऽस्ति। एतज्जगतः कारणे विंशत्युत्तराणि यानि सप्तशतानि तत्त्वानि सन्ति तानि मिलित्वा स्थूलानीश्वरनियोगेन जातानि सन्ति। एषां कारणमजं नित्यं च वर्त्तते यावद्भिन्नान्येतानि प्रत्यक्षतया न जानीयात् तावद्विद्यावृद्धये मनुष्यः प्रयतेत ॥ ११ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - काल हा अनन्त, अपरिणामी व विभू आहे. त्याची कधी उत्पत्ती होत नाही व नाशही होत नाही. या सृष्टीच्या कारणात सातशे वीस तत्त्व आहेत. ईश्वराने त्यांना एकत्र करून स्थूल निर्मिती केलेली आहे. त्यांचे कारण अज व नित्य आहे. जोपर्यंत या तत्त्वांना प्रत्यक्ष वेगवेगळ्या स्वरूपात जाणता येत नाही. तोपर्यंत या विद्येच्या वृद्धीसाठी माणसांनी प्रयत्न करावा. ॥ ११ ॥