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अ॒स्य वा॒मस्य॑ पलि॒तस्य॒ होतु॒स्तस्य॒ भ्राता॑ मध्य॒मो अ॒स्त्यश्न॑:। तृ॒तीयो॒ भ्राता॑ घृ॒तपृ॑ष्ठो अ॒स्यात्रा॑पश्यं वि॒श्पतिं॑ स॒प्तपु॑त्रम् ॥

English Transliteration

asya vāmasya palitasya hotus tasya bhrātā madhyamo asty aśnaḥ | tṛtīyo bhrātā ghṛtapṛṣṭho asyātrāpaśyaṁ viśpatiṁ saptaputram ||

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Pad Path

अ॒स्य। वा॒मस्य॑। प॒लि॒तस्य॑। होतुः॑। तस्य॑। भ्राता॑। म॒ध्य॒मः। अ॒स्ति॒। अश्नः॑। तृ॒तीयः॑। भ्राता॑। घृ॒तऽपृ॑ष्ठः। अ॒स्य॒। अत्र॑। अ॒प॒श्य॒म्। वि॒श्पति॑म्। स॒प्तऽपु॑त्रम् ॥ १.१६४.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:164» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:14» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एकसौ चौसठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में तीन प्रकार के अग्नि के विषय को कहते हैं ।

Word-Meaning: - (वामस्य) शिल्प के गुणों से प्रशंसित (पलितस्य) वृद्धावस्था को प्राप्त (अस्य) इस सज्जन का बिजुलीरूप पहिला, (होतुः) देने वा हवन करनेवाले (तस्य) उसके (भ्राता) बन्धु के समान (अश्नः) पदार्थों का भक्षण करनेवाला (मध्यमः) पृथिवी आदि लोकों में प्रसिद्ध हुआ दूसरा और (घृतपृष्ठः) घृत वा जल जिसके पीठ पर अर्थात् ऊपर रहता वह (अस्य) इसके (भ्राता) भ्राता के समान (तृतीयः) तीसरा (अस्ति) है, (अत्र) यहाँ (सप्तपुत्रम्) सात प्रकार के तत्त्वों से उत्पन्न (विश्पतिम्) प्रजाजनों की पालना करनेवाले सूर्य को मैं (अपश्यम्) देखूँ ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। इस जगत् में तीन प्रकार का अग्नि है-एक बिजुलीरूप, दूसरा काष्ठादि में जलता हुआ भूमिस्थ और तीसरा वह है जो कि सूर्यमण्डलस्थ होकर समस्त जगत् की पालना करता है ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ त्रिविधाग्निविषयमाह ।

Anvay:

वामस्य पलितस्याऽस्य प्रथमो होतुस्तस्य भ्रातेवाऽश्नो मध्यमो घृतपृष्ठोऽस्य भ्रातेव तृतीयोऽस्ति। अत्र सप्तपुत्रं विश्पतिं सूर्यमपश्यम् ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (अस्य) (वामस्य) शिल्पगुणैः प्रशस्तस्य (पलितस्य) प्राप्तवृद्धावस्थस्य (होतुः) दातुः (तस्य) (भ्राता) भ्रातेव (मध्यमः) मध्ये भवः पृथिव्यादिस्थो द्वितीयः (अस्ति) (अश्नः) भोक्ता (तृतीयः) (भ्राता) बन्धुवद्वर्त्तमानः (घृतपृष्ठः) घृतं जलं पृष्ठेऽस्य (अस्य) (अत्र) (अपश्यम्) (विश्पतिम्) प्रजायाः पालकम् (सप्तपुत्रम्) सप्तविधैस्तत्त्वैर्जातम् ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। अस्मिञ्जगति त्रिविधोऽग्निरस्ति एको विद्युद्रूपः द्वितीयः काष्ठादिप्रज्वलितो भूमिस्थस्तृतीयः सवितृमण्डलस्थः सन् सर्वं जगत् पालयति ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अग्नी, काल, सूर्य, विमान इत्यादी पदार्थ व ईश्वर; विद्वान व स्त्री इत्यादींच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. या जगात तीन प्रकारचा अग्नी आहे. एक विद्युतरूपी, दुसरा काष्ठ इत्यादीमध्ये प्रज्वलित होणारा भूमीस्थ व तिसरा सूर्यमंडळापासून प्राप्त होऊन जगाचे पालन करतो तो अग्नी. ॥ १ ॥