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यदक्र॑न्दः प्रथ॒मं जाय॑मान उ॒द्यन्त्स॑मु॒द्रादु॒त वा॒ पुरी॑षात्। श्ये॒नस्य॑ प॒क्षा ह॑रि॒णस्य॑ बा॒हू उ॑प॒स्तुत्यं॒ महि॑ जा॒तं ते॑ अर्वन् ॥

English Transliteration

yad akrandaḥ prathamaṁ jāyamāna udyan samudrād uta vā purīṣāt | śyenasya pakṣā hariṇasya bāhū upastutyam mahi jātaṁ te arvan ||

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Pad Path

यत्। अक्र॑न्दः। प्र॒थ॒मम्। जाय॑मानः। उ॒त्ऽयन्। स॒मु॒द्रात्। उ॒त। वा॒। पुरी॑षात्। श्ये॒नस्य॑। प॒क्षा। ह॒रि॒णस्य॑। बा॒हू इति॑। उ॒प॒ऽस्तुत्य॑म्। महि॑। जा॒तम्। ते॒। अ॒र्व॒न् ॥ १.१६३.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:163» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:11» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब एकसौ तिरेसठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके आदि से विद्वान् और बिजुली के गुणों को कहते हैं ।

Word-Meaning: - हे (अर्वन्) विज्ञानवान् विद्वान् ! (यत्) जिस कारण तू (समुद्रात्) अन्तरिक्ष से (उत) अथ (वा) वा (पुरीषात्) पूर्ण कारण से (उद्यन्) उदय को प्राप्त होते हुए सूर्य के तुल्य (जायमानः) उत्पन्न होता (प्रथमम्) पहिले (अक्रन्दः) शब्द करता है, जिस (ते) तेरा (श्येनस्य) वाज के (पक्षा) पङ्खों के समान (हरिणस्य) हरिण के (बाहू) बाधा करनेवाली भुजा के तुल्य (उपस्तुत्यम्) समीप से प्रशंसा के योग्य (महि, जातम्) बड़ा उत्पन्न हुआ काम साधक अग्नि है सो सबको सत्कार करने योग्य है ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो धर्मयुक्त ब्रह्मचर्य से विद्याओं को पढ़ते हैं, वे सूर्य के समान प्रकाशमान, वाज के समान वेगवान् और हरिण के समान कूदते हुए प्रशंसित होते हैं ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ विद्वदग्निगुणानाह ।

Anvay:

हे अर्वन् यत् त्वं समुद्रादुतापि वा पुरीषादुद्यन्निव जायमानः प्रथममक्रन्दः। यस्य ते श्येनस्य पक्षेव हरिणस्य बाहू इव उपस्तुत्यं महि जातं कर्माङ्गमग्निरस्ति स सर्वैः सत्कर्त्तव्यः ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (यत्) यस्मात् कारणात् (अक्रन्दः) शब्दायसे (प्रथमम्) आदिमम् (जायमानः) उत्पद्यमानः (उद्यन्) उदयं प्राप्नुवन् (समुद्रात्) अन्तरिक्षात् (उत) अपि (वा) पक्षान्तरे (पुरीषात्) पूर्णात्कारणात् (श्येनस्य) (पक्षा) पक्षौ (हरिणस्य) (बाहू) बाधकौ भुजौ (उपस्तुत्यम्) उपस्तोतुमर्हम् (महि) महत् (जातम्) उत्पन्नम् (ते) तव (अर्वन्) विज्ञानवन् ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये धर्म्येण ब्रह्मचर्येण विद्या अधीयते ते सूर्यवत् प्रकाशमानाः श्येनवद्वेगवन्तो मृगवदुत्प्लवमानाः प्रशंसिता भवन्ति ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात विद्वान व विद्युतच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे धर्मयुक्त ब्रह्मचर्य पाळून विद्या शिकतात ते सूर्याप्रमाणे प्रकाशमान, बहिरीससाण्याप्रमाणे वेगवान व हरिणाप्रमाणे चपळ असतात त्यांची प्रशंसा होते. ॥ १ ॥