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ए॒ष च्छाग॑: पु॒रो अश्वे॑न वा॒जिना॑ पू॒ष्णो भा॒गो नी॑यते वि॒श्वदे॑व्यः। अ॒भि॒प्रियं॒ यत्पु॑रो॒ळाश॒मर्व॑ता॒ त्वष्टेदे॑नं सौश्रव॒साय॑ जिन्वति ॥

English Transliteration

eṣa cchāgaḥ puro aśvena vājinā pūṣṇo bhāgo nīyate viśvadevyaḥ | abhipriyaṁ yat puroḻāśam arvatā tvaṣṭed enaṁ sauśravasāya jinvati ||

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Pad Path

ए॒षः। छागः॑। पु॒रः। अश्वे॑न। वा॒जिना॑। पू॒ष्णः। भ॒गः। नी॒य॒ते॒। वि॒श्वऽदे॑व्यः। अ॒भि॒ऽप्रिय॑म्। यत्। पु॒रो॒ळाश॑म्। अर्व॑ता। त्वष्टा॑। इत्। ए॒न॒म्। सौ॒श्र॒व॒साय॑। जि॒न्व॒ति॒ ॥ १.१६२.३

Rigveda » Mandal:1» Sukta:162» Mantra:3 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:7» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्वान् ! जिस पुरुष ने (वाजिना) वेगवान् (अश्वेन) घोड़ा के साथ (एषः) यह प्रत्यक्ष (विश्वदेव्यः) समस्त दिव्य गुणों में उत्तम (पूष्णः) पुष्टि का (भागः) भाग (छागः) छाग (पुरः) पहिले (नीयते) पहुँचाया वा (यत्) जो (त्वष्टा) उत्तम रूप सिद्ध करनेवाला जन (सौश्रवसाय) सुन्दर अन्नों में प्रसिद्ध अन्न के लिये (अर्वता) विशेष ज्ञान के साथ (एनम्) इस (अभिप्रियम्) सब ओर से प्रिय (पुरोडाशम्) सुन्दर बनाये हुए अन्न को (इत्) ही (जिन्वति) प्राप्त होता है, वह सुखी होता है ॥ ३ ॥
Connotation: - जो मनुष्य घोड़ों की पुष्टि के लिये छेरी का दूध उनको पिलाते और अच्छे बनाये हुए अन्न को खाते हैं, वे निरन्तर सुखी होते हैं ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे विद्वन् येन पुरुषेण वाजिनाऽश्वेन सह एष विश्वदेव्यः पूष्णो भागः छागः पुरो नीयते यद्यस्त्वष्टा सौश्रवसायार्वतैनमभिप्रियं पुरोडाशमिज्जिन्वति स सुखी जायते ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (एषः) प्रत्यक्षः (छागः) (पुरः) पूर्वम् (अश्वेन) तुरङ्गेन (वाजिना) वेगवता (पूष्णः) पुष्टेः (भागः) (नीयते) (विश्वदेव्यः) विश्वेषु सर्वेषु देवेषु दिव्यगुणेषु साधुः (अभिप्रियम्) अभितः कमनीयम् (यत्) यः (पुरोडाशम्) सुसंस्कृतमन्नम् (अर्वता) विज्ञानेन सह (त्वष्टा) सुरूपसाधकः (इत्) एव (एनम्) (सौश्रवसाय) शोभनेष्वन्नेषु भवाय (जिन्वति) प्राप्नोति ॥ ३ ॥
Connotation: - ये मनुष्या अश्वानां पुष्टये छागदुग्धं पाययन्ति सुसंस्कृतान्नं च भुञ्जते ते सुखिनो भवन्ति ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जी माणसे घोड्याच्या पुष्टीसाठी बकरीचे दूध त्यांना पाजवितात व संस्कारित अन्न खातात ती निरन्तर सुखी होतात. ॥ ३ ॥