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निश्चर्म॑णो॒ गाम॑रिणीत धी॒तिभि॒र्या जर॑न्ता युव॒शा ताकृ॑णोतन। सौध॑न्वना॒ अश्वा॒दश्व॑मतक्षत यु॒क्त्वा रथ॒मुप॑ दे॒वाँ अ॑यातन ॥

English Transliteration

niś carmaṇo gām ariṇīta dhītibhir yā jarantā yuvaśā tākṛṇotana | saudhanvanā aśvād aśvam atakṣata yuktvā ratham upa devām̐ ayātana ||

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Pad Path

निः। चर्म॑णः। गाम्। अ॒रि॒णी॒त॒। धी॒तिऽभिः॑। या। जर॑न्ता। यु॒व॒शा। ता। अ॒कृ॒णो॒त॒न॒। सौध॑न्वनाः। अश्वा॑त्। अश्व॑म्। अ॒त॒क्ष॒त॒। यु॒क्त्वा। रथ॑म्। उप॑। दे॒वान्। अ॒या॒त॒न॒ ॥ १.१६१.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:161» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:5» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! तुम (धीतिभिः) अङ्गुलियों के समान धारणाओं से (चर्मणः) शरीर की त्वचा के समान शरीर के ऊपरी भाग का सम्बन्ध रखनेवाली (गाम्) पृथिवी को (अरिणीत) प्राप्त होओ (या) जो (जरन्ता) स्तुति प्रशंसा करते हुए (युवशा) युवा विद्यार्थियों को समीप रखनेवाले शिल्पी होवें, (ता) वे कारीगरी के कामों में अच्छे प्रकार प्रवृत्त हुए (निरकृणोतन) निरन्तर उन शिल्प कार्यों को करें। (सौधन्वनाः) उत्तम धनुष् में कुशल होते हुए सज्जन (अश्वात्) वेगवान् पदार्थ से (अश्वम्) वेगवाले पदार्थ को (अतक्षत) छाँटो और वेग देने में ठीक करो। और (रथम्) रथ को (युक्त्वा) जोड़के (देवान्) दिव्य भोग वा दिव्य गुणों को (उपायातन) उपगत होओ, प्राप्त होओ ॥ ७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य अङ्गुलियों के समान कर्म के करने और शिल्पविद्या में प्रीति रखनेवाले पदार्थ से पदार्थ के गुणों को जानकर यान आदि कार्यों में उनका उपयोग करते हैं, वे दिव्य भोगों को प्राप्त होते हैं ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मनुष्या यूयं धीतिभिश्चर्मणइव गामरिणीत। या जरन्ता युवशा शिल्पिनौ स्यातां ता शिल्पकर्मसु प्रवृत्तौ निरकृणोतन। सौधन्वनाः सन्तोऽश्वादश्वमतक्षत रथं युक्त्वा देवानुपायातन ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (निः) नितराम् (चर्मणः) त्वग्वदुपरिभागस्य (गाम्) पृथिवीम् (अरिणीत) प्राप्नुत (धीतिभिः) अङ्गुलिभिरिव धारणाभिः (या) यौ (जरन्ता) स्तुवन्तौ (युवशा) युवानो विद्यन्ते ययोस्तौ। अत्र लोमादिपामादिना मत्वर्थीयः शः (ता) तौ (अकृणोतन) कुरुत (सौधन्वनाः) सुधन्वनि कुशलाः (अश्वात्) वेगवतः पदार्थात् (अश्वम्) वेगवन्तं पदार्थम् (अतक्षत) अवस्तृणीत (युक्त्वा) (रथम्) यानम् (उप) (देवान्) दिव्यान् भोगान् गुणान् वा (अयातन) प्राप्नुत ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या अङ्गुलीवत्कर्मकारिणः शिल्पविद्याप्रियाः पदार्थात्पदार्थगुणान् विज्ञाय यानादिषु कार्येषूपयुञ्जते ते दिव्यान् भोगान् प्राप्नुवन्ति ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जी माणसे बोटांप्रमाणे कर्म करणारी व शिल्पविद्येत प्रीती ठेवणारी असून पदार्थांच्या गुणांना जाणून यान इत्यादी कार्यात त्यांचा उपयोग करतात ती दिव्य भोग प्राप्त करतात. ॥ ७ ॥