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हना॑मैनाँ॒ इति॒ त्वष्टा॒ यदब्र॑वीच्चम॒सं ये दे॑व॒पान॒मनि॑न्दिषुः। अ॒न्या नामा॑नि कृण्वते सु॒ते सचाँ॑ अ॒न्यैरे॑नान्क॒न्या॒३॒॑ नाम॑भिः स्परत् ॥

English Transliteration

hanāmainām̐ iti tvaṣṭā yad abravīc camasaṁ ye devapānam anindiṣuḥ | anyā nāmāni kṛṇvate sute sacām̐ anyair enān kanyā nāmabhiḥ sparat ||

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Pad Path

हना॑म। ए॒ना॒न्। इति॑। त्वष्टा॑। यत्। अब्र॑वीत्। च॒म॒सम्। ये। दे॒व॒ऽपान॑म्। अनि॑न्दिषुः। अ॒न्या। नामा॑नि। कृ॒ण्व॒ते॒। सु॒ते। सचा॑। अ॒न्यैः। ए॑नान्। क॒न्या॑। नाम॑ऽभिः। स्प॒र॒त् ॥ १.१६१.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:161» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:4» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! (त्वष्टा) छिन्न-भिन्न करनेवाला सूर्य के समान विद्वान् (यत्) जिस (देवपानम्) किरण वा इन्द्रियों से पीने योग्य (चमसम्) मेघ जल को (अब्रवीत्) कहता है (ये) जो इसकी (अनिन्दिषुः) निन्दा करें उन (एनान्) इनको हम लोग (हनाम) मारें नष्ट करें। जो (सचान्) संयुक्त (अन्यैः) और (नामभिः) नामों से (अन्या) और (नामानि) नामों को (सुते) उत्पन्न किये हुए व्यवहार में (कृण्वते) प्रसिद्ध करते हैं (एनान्) इन जनों को (कन्या) कुमारी कन्या (स्परत्) प्रसन्न करे (इति) इस प्रकार से उनके प्रति तुम भी वर्त्तो ॥ ५ ॥
Connotation: - जो विद्वानों की निन्दा करें, विद्वानों में मूर्खबुद्धि और मूर्खों में विद्वद्बुद्धि करें, वे ही खल सबको तिरस्कार करने योग्य हैं ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे मनुष्या त्वष्टा यद्यं देवपानं चमसमब्रवीद्य एनमनिन्दिषुस्तानेनान् वयं हनाम। ये सचानन्यैर्नामभिरन्या नामानि सुते कृण्वत एनान्कन्या स्परदित्येवं तान्प्रति यूयमपि वर्त्तध्वम् ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (हनाम) हिंसेम (एनान्) इष्टाचारिणः (इति) अनेन प्रकारेण (त्वष्टा) छेत्ता सूर्य इव विद्वान् (यत्) (अब्रवीत्) ब्रूते (चमसम्) मेघम् (ये) (देवपानम्) देवैः किरणैरिन्द्रियैर्वा पेयम् (अनिन्दिषुः) निन्देयुः (अन्या) अन्यानि (नामानि) (कृण्वते) कुर्वन्ति (सुते) निष्पादिते (सचान्) संयुक्तान् (अन्यैः) भिन्नैः (एनान्) जनान् (कन्या) कुमारिका (नामभिः) (स्परत्) प्रीणयेत्। अत्र लङ्यडभावः ॥ ५ ॥
Connotation: - ये विदुषो निन्देयुर्विद्वत्स्वविद्वद्बुद्धिमविद्वत्सु विद्वत्प्रज्ञां च कुर्युस्त एव खलास्सर्वैस्तिरस्करणीयाः ॥ ५ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे विद्वानांची निन्दा करतात व विद्वानात मूर्खबुद्धी व मूर्खात विद्वद्बुद्धी करतात तेच खल असून सर्वांनी तिरस्कार करावा असे असतात. ॥ ५ ॥