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स॒म्मील्य॒ यद्भुव॑ना प॒र्यस॑र्पत॒ क्व॑ स्वित्ता॒त्या पि॒तरा॑ व आसतुः। अश॑पत॒ यः क॒रस्नं॑ व आद॒दे यः प्राब्र॑वी॒त्प्रो तस्मा॑ अब्रवीतन ॥

English Transliteration

sammīlya yad bhuvanā paryasarpata kva svit tātyā pitarā va āsatuḥ | aśapata yaḥ karasnaṁ va ādade yaḥ prābravīt pro tasmā abravītana ||

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Pad Path

स॒म्ऽमील्य॑। यत्। भुव॑ना। प॒रि॒ऽअस॑र्पत। क्व॑। स्वि॒त्। तात्या। पि॒तरा॑। वः॒। आ॒स॒तुः॒। अश॑पत। यः। क॒रस्न॑म्। वः॒। आ॒ऽद॒दे। यः। प्र। अब्र॑वीत्। प्रो इति॑। तस्मै॑। अ॒ब्र॒वी॒त॒न॒ ॥ १.१६१.१२

Rigveda » Mandal:1» Sukta:161» Mantra:12 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:6» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:12


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे विद्यार्थिजनो ! तुम (संमील्य) आँखें मिलमिला के (यत्) जो (भुवना) भूमि आदि लोक हैं उनको (पर्यसर्पत) सब ओर से जानो, तब (वः) तुम्हारे (तात्या) उस समय होनेवाले (पितरा) माता-पिता अर्थात् विद्याऽध्ययन समय के माता-पिता (क्व) (स्वित्) कहीं (आसतुः) निरन्तर बसें (यः) और जो (वः) तुम्हारी (करस्नम्) भुजा को (आददे) पकड़ता है वा जिसको (अशपत) अपराध हुए पर कोशो, (यः) जो आचार्य तुमको (प्र, अब्रवीत्) उपदेश सुनावे (तस्मै) उसके लिये (प्रो, अब्रवीतन) प्रिय वचन बोलो ॥ १२ ॥
Connotation: - जब पढ़ानेवालों के समीप विद्यार्थी आवें तब उनसे यह पूछना योग्य है कि तुम कहाँ के हो ? तुम्हारा निवास कहाँ है ? तुम्हारे माता-पिता का क्या नाम है ? क्या पढ़ना चाहते हो ? अखण्डित ब्रह्मचर्य करोगे वा न करोगे ? इत्यादि पूछ करके ही इनको विद्या ग्रहण करने के लिये ब्रह्मचर्य की शिक्षा देवें और शिष्य जन पढ़ानेवालों की निन्दा और उनके प्रतिकूल आचरण कभी न करें ॥ १२ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे विद्यार्थिनो यूयं संमील्य यद्भुवना सन्ति तानि पर्य्यसर्पत तदा वस्तात्या पितरा क्व स्विदासतुर्निवसतः। यो वः करस्नमाददे यूयं यमशपत यो युष्मान् प्राब्रवीत् तस्मै प्रो अब्रवीतन ॥ १२ ॥

Word-Meaning: - (संमील्य) सम्यक् निमेषणं कृत्वा (यत्) यदा (भुवना) भुवनानि लोकान् (पर्यसर्पत) परितः सर्वतो विजानीत (क्व) कस्मिन् (स्वित्) प्रश्ने (तात्या) तस्मिन्नवसरे भवा। अत्र वाच्छन्दसीति तदव्ययात्त्यप्। (पितरा) जननी जनकश्च (विः) युष्माकम् (आसतुः) (अशपत) सत्यपराधे आकुश्यत (यः) (करस्नम्) बाहुम्। करस्नाविति बाहुना०। निघं० २। ४। (वः) युष्माकम् (आददे) गृह्णाति। अत्रात्मनेपदे तलोपः। (यः) आचार्यः (प्र) (अब्रवीत्) ब्रूयादुपदिशेत् (प्रो) प्रकृष्टार्थे (तस्मै) (अब्रवीतन) उपदिशेत ॥ १२ ॥
Connotation: - यदाऽध्यापकानां समीपे विद्यार्थिन आगच्छेयुस्तदैते इदं प्रष्टव्याः। यूयं कुत्रत्या युष्माकं कुत्र निवासो मातापित्रोः किन्नाम किमध्येतुमिच्छथाखण्डितं ब्रह्मचर्यं करिष्यथ न वेत्यादि पृष्ट्वैतेभ्यो विद्याग्रहणाय ब्रह्मचर्यदीक्षां दद्युः शिष्याध्यापकानां निन्दामप्रियाचरणं च कदापि नैव कुर्य्युः ॥ १२ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जेव्हा अध्यापकांजवळ विद्यार्थी येतील तेव्हा त्यांना विचारावे की तुम्ही कुठून आलात? तुमचे निवासस्थान कोणते? तुमच्या माता-पित्याचे नाव काय? काय शिकू इच्छिता? अखंड ब्रह्मचर्यपालन कराल की नाही? इत्यादी विचारून त्यांना विद्या ग्रहण करण्यासाठी ब्रह्मचर्याचे शिक्षण द्यावे व शिष्यांनीही अध्यापकांची निंदा व त्यांच्या प्रतिकूल आचरण कधी करू नये. ॥ १२ ॥