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उ॒द्वत्स्व॑स्मा अकृणोतना॒ तृणं॑ नि॒वत्स्व॒पः स्व॑प॒स्यया॑ नरः। अगो॑ह्यस्य॒ यदस॑स्तना गृ॒हे तद॒द्येदमृ॑भवो॒ नानु॑ गच्छथ ॥

English Transliteration

udvatsv asmā akṛṇotanā tṛṇaṁ nivatsv apaḥ svapasyayā naraḥ | agohyasya yad asastanā gṛhe tad adyedam ṛbhavo nānu gacchatha ||

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Pad Path

उ॒द्वत्ऽसु॑। अ॒स्मै॒। अ॒कृ॒णो॒त॒न॒। तृण॑म्। नि॒वत्ऽसु॑। अ॒पः। सु॒ऽअ॒प॒स्यया॑। न॒रः॒। अगो॑ह्यस्य। यत्। अस॑स्तन। गृ॒हे। तत्। अ॒द्य। इ॒दम्। ऋ॒भ॒वः॒। न। अनु॑। ग॒च्छ॒थ॒ ॥ १.१६१.११

Rigveda » Mandal:1» Sukta:161» Mantra:11 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:6» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:11


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे (नरः) नेता अग्रगन्ता जनो ! तुम (स्वपस्यया) अपने को उत्तम काम की इच्छा से (अस्मै) इस गवादि पशु के लिये (निवत्सु) नीचे और (उद्वत्सु) ऊँचे प्रदेशों में (तृणम्) काटने योग्य घास को और (अपः) जलों को (अकृणोतन) उत्पन्न करो। हे (ऋभवः) मेधावी जनो ! तुम (यत्) जो (अगोह्यस्य) न लुकाय रखने योग्य के (गृहे) घर में वस्तु है (तत्) उसको (न) न (असस्तन) नष्ट करो (अद्य) इस उत्तम समय में (इमम्) इसके (अनु, गच्छथ) पीछे चलो ॥ ११ ॥
Connotation: - मनुष्यों को चाहिये कि ऊँचे-नीचे स्थलों में पशुओं के राखने के लिये जल और घास आदि पदार्थों को राखें और अरक्षित अर्थात् गिरे, पड़े वा प्रत्यक्ष में धरे हुए दूसरे के पदार्थ को भी अन्याय से ले लेने की इच्छा कभी न करें। धर्म, विद्या और बुद्धिमान् जनों का सङ्ग सदैव करें ॥ ११ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे नरो यूयं स्वपस्ययाऽस्मै निवत्सूद्वत्सु तृणमपश्चाकृणोतन। हे ऋभवो यूयं यदगोह्यस्य गृहे वस्त्वऽस्ति तन्नासस्तनाद्येदमनुगच्छथ ॥ ११ ॥

Word-Meaning: - (उद्वत्सु) ऊर्ध्वेषूत्कृष्टेषु प्रदेशेषु (अस्मै) गवाद्याय पशवे (अकृणोतन) कुरुत। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (तृणम्) हिंसितव्यं घासम् (निवत्सु) निम्नप्रदेशेषु (अपः) जलानि (स्वपस्यया) आत्मनः सुष्ठु अपसः कर्मण इच्छया (नरः) नेतारः (अगोह्यस्य) गोहितुं रक्षितुमनर्हस्य (यत्) (असस्तन) हिंसत (गृहे) (तत्) (अद्य) (इदम्) (ऋभवः) मेधाविनः (न) (अनु, गच्छथ) ॥ ११ ॥
Connotation: - मनुष्यैरुच्चनीचस्थलेषु पशुरक्षणाय जलानि घासाश्च संरक्षणीयाः। अरक्षितस्य परपदार्थस्याप्यन्यायेन ग्रहणेच्छा कदाचिन्नैव कार्य्या। धर्मविद्यानां मेधाविनां च सङ्गः सदैव कर्त्तव्यः ॥ ११ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - पशूंचे रक्षण करण्यासाठी माणसांनी उंच खाली स्थानावर जल व गवत इत्यादी पदार्थ ठेवावेत. अरक्षित अर्थात् पडलेल्या किंवा प्रत्यक्ष दुसऱ्याजवळच्या पदार्थाची अन्यायाने घेण्याची इच्छा कधी करू नये. धर्म, विद्या व बुद्धिमानांची संगती धरावी. ॥ ११ ॥