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श्रो॒णामेक॑ उद॒कं गामवा॑जति मां॒समेक॑: पिंशति सू॒नयाभृ॑तम्। आ नि॒म्रुच॒: शकृ॒देको॒ अपा॑भर॒त्किं स्वि॑त्पु॒त्रेभ्य॑: पि॒तरा॒ उपा॑वतुः ॥

English Transliteration

śroṇām eka udakaṁ gām avājati māṁsam ekaḥ piṁśati sūnayābhṛtam | ā nimrucaḥ śakṛd eko apābharat kiṁ svit putrebhyaḥ pitarā upāvatuḥ ||

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Pad Path

श्रो॒णाम्। एकः॑। उ॒द॒कम्। गाम्। अव॑। अ॒ज॒ति॒। मां॒सम्। एकः॑। पिं॒श॒ति॒। सू॒नया॑। आऽभृ॑तम्। आ। नि॒ऽम्रुचः॑। शकृ॒त्। एकः॑। अप॑। अ॒भ॒र॒त्। किम्। स्वि॒त्। पु॒त्रेभ्यः॑। पि॒तरौ॑। उप॑। आ॒व॒तुः॒ ॥ १.१६१.१०

Rigveda » Mandal:1» Sukta:161» Mantra:10 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:5» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:10


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जैसे (एकः) विद्वान् (श्रोणाम्) सुनने योग्य (गाम्) भूमि और (उदकम्) जल को (अवाजति) जानता, कलायन्त्रों से उसको प्रेरणा देता है वा जैसे (एकः) इकेला (सूनया) हिंसा से (आभृतम्) अच्छे प्रकार धारणा किये हुए (मांसम्) मरे हुए के अङ्ग के टूंकटेड़े (=टुकड़े) को (पिंशति) अलग करता है। वा जैसे (एकः) एक (निम्रुचः) नित्य प्राप्त प्राणी को (शकृत्) मल के समान (अप, आ अभरत्) पदार्थ को उठाता है वैसे (पितरौ) माता-पिता (पुत्रेभ्यः) पुत्रों के लिये (किं स्वित्) क्या (उपावतुः) समीप में चाहैं ॥ १० ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो पिता-माता जैसे गौएं बछड़े को सुख चाहती, दुःख से बचाती वा बहेलिया मांस को लेके अनिष्ट को छोड़े वा वैद्य रोगी के मल को दूर करे वैसे पुत्रों को दुर्गुणों से पृथक् कर शिक्षा और विद्यायुक्त करते हैं, वे सन्तान के सुख को पाते हैं ॥ १० ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यथैकः श्रोणाङ्गामुदकञ्चावाजति यथैकः सूनयाभृतं मांसं पिंशति यथैको निम्रुचः शकृदपाभरत्तथा पितरौ पुत्रेभ्यः किं स्विदुपावतुः ॥ १० ॥

Word-Meaning: - (श्रोणाम्) श्रोतव्याम् (एकः) विद्वान् (उदकम्) जलम् (गाम्) भूमिम् (अव) (अजति) जानाति प्रक्षिपति वा (मांसम्) मृतकशरीरावयवम् (एकः) असहायः (पिंशति) पृथक् करोति (सूनया) हिंसया (आभृतम्) समन्ताद्धृतम् (आ) (निम्रुचः) नित्यं प्राप्तस्य (शकृत्) विष्टेव (एकः) (अपः) (अभरत्) भरति (किम्) (स्वित्) प्रश्ने (पुत्रेभ्यः) (पितरौ) मातापितरौ (उप) (आवतुः) कामयेताम् ॥ १० ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये पितरो यथा धेनुर्वत्समिव व्याधो मांसमिव वैद्यो रोगिणो मलनिवारणमिव पुत्रान् दुर्गुणेभ्यो निवर्त्य शिक्षाविद्याप्तान् कुर्वन्ति ते सन्तानसुखमाप्नुवते ॥ १० ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे गाय वासराचे सुख इच्छिते व दुःखापासून बचाव करते. पक्ष्यांना मारणारा मांस घेतो व इतर गोष्टी सोडून देतो, वैद्य रोग्याचा मल दूर करतो तसे जे माता पिता पुत्रांना दुर्गुणांपासून पृथक करून शिक्षण देऊन विद्यायुक्त करतात तेच संतानांचे सुख प्राप्त करतात. ॥ १० ॥