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ते हि द्यावा॑पृथि॒वी वि॒श्वश॑म्भुव ऋ॒ताव॑री॒ रज॑सो धार॒यत्क॑वी। सु॒जन्म॑नी धि॒षणे॑ अ॒न्तरी॑यते दे॒वो दे॒वी धर्म॑णा॒ सूर्य॒: शुचि॑: ॥

English Transliteration

te hi dyāvāpṛthivī viśvaśambhuva ṛtāvarī rajaso dhārayatkavī | sujanmanī dhiṣaṇe antar īyate devo devī dharmaṇā sūryaḥ śuciḥ ||

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Pad Path

ते इति॑। हि। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। वि॒श्वऽश॑म्भुवा। ऋ॒तव॑री॒ इत्यृ॒तऽव॑री। रज॑सः। धा॒र॒यत्क॑वी॒ इति॑ धा॒र॒यत्ऽक॑वी। सु॒जन्म॑नी॒ इति॑ सु॒ऽजन्म॑नी। धि॒षणे॒ इति॑। अ॒न्तः। ई॒य॒ते॒। दे॒वः। दे॒वी इति॑। धर्म॑णा। सूर्यः॑। शुचिः॑ ॥ १.१६०.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:160» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:3» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब पाँच ऋचावाले एकसौ साठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में द्यावापृथिवी के दृष्टान्त से मनुष्यों के उपकार करने का वर्णन करते हैं ।

Word-Meaning: - हे विद्वानो ! जो (विश्वशम्भुवा) संसार में सुख की भावना करनेहारे करके (ऋतावरी) सत्य कारण से युक्त (धारयत्कवी) अनेक पदार्थों की धारणा कराते और प्रबल जिन का देखना (सुजन्मनी) सुन्दर जन्मवाले (धिषणे) उत्कट सहनशील (देवी) निरन्तर दीपते हुए (द्यावापृथिवी) बिजुली और अन्तरिक्ष लोक (धर्मणा) अपने धर्म्म से अर्थात् अपने भाव से (रजसः) लोकों को (अन्तः) अपने बीच में धरते हैं। जिन उक्त द्यावापृथिवियों में (शुचिः) पवित्र (देवः) दिव्य गुणवाला (सूर्य्यः) सूर्यलोक (ईयते) प्राप्त होता है (ते) उन दोनों को (हि) ही तुम अच्छे प्रकार जानो ॥ १ ॥
Connotation: - जैसे सब लोकों के वायु, बिजुली और आकाश ठहरने के स्थान हैं, वैसे ईश्वर उन वायु आदि पदार्थों का आधार है। इस सृष्टि में एक-एक ब्रह्माण्ड के बीच एक-एक सूर्यलोक है, यह सब जानें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ द्यावापृथिव्योर्दृष्टान्तेन मनुष्याणामुपकारग्रहणमाह ।

Anvay:

हे विद्वांसो ये विश्वशम्भुवा ऋतावरी धारयत्कवी सुजन्मनी धिषणे देवी द्यावापृथिवी धर्मणा रजसोऽन्तर्धरतः। ययोरन्तः शुचिर्देवः सूर्य्य ईयते ते हि यूयं सम्यग्विजानीत ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (ते) द्वे (हि) खलु (द्यावापृथिवी) विद्युदन्तरिक्षे (विश्वशम्भुवा) विश्वस्मिन् शं सुखं भावुकेन (ऋतावरी) सत्यकारणयुक्ते (रजसः) लोकान् (धारयत्कवी) धारयन्तौ कवी विक्रान्तदर्शनौ सूर्यविद्युतौ ययोस्तौ (सुजन्मनी) शोभनं जन्म ययोस्ते (धिषणे) प्रसोढ्यौ (अन्तः) मध्ये (ईयते) प्राप्नोति (देवः) दिव्यगुणः (देवी) देदीप्यमाने (धर्मणा) स्वधर्मेण (सूर्यः) (शुचिः) पवित्रः ॥ १ ॥
Connotation: - यथा सर्वेषां लोकानां वायुविद्युदाकाशाऽधिकरणानि सन्ति तथेश्वरो वाय्वादीनामाधारोऽस्ति। अस्यां सृष्टावेकैकस्य ब्रह्माण्डस्य मध्य एकैकः सूर्यलोकोऽस्तीति सर्वे विद्युः ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात द्यावा पृथ्वीचा दृष्टांत असून माणसांनी त्यापासून उपकार घ्यावेत हे सांगितलेले आहे. त्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे समजले पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - जशी सर्व लोकांची वायू, विद्युत व आकाश ही राहण्याची स्थाने आहेत, तसा ईश्वर त्या वायू इत्यादी पदार्थांचा आधार आहे. या सृष्टीत एकेका ब्रह्मांडात एक एक सूर्य लोक आहे, हे सर्वांनी जाणावे. ॥ १ ॥