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सेमं नः॒ काम॒मा पृ॑ण॒ गोभि॒रश्वैः॑ शतक्रतो। स्तवा॑म त्वा स्वा॒ध्यः॑॥

English Transliteration

semaṁ naḥ kāmam ā pṛṇa gobhir aśvaiḥ śatakrato | stavāma tvā svādhyaḥ ||

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Pad Path

सः। इ॒मम्। नः॒। काम॑म्। आ। पृ॒ण॒। गोभिः॑। अश्वैः॑। श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतक्रतो। स्तवा॑म। त्वा॒। सु॒ऽआ॒ध्यः॑॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:16» Mantra:9 | Ashtak:1» Adhyay:1» Varga:31» Mantra:4 | Mandal:1» Anuvak:4» Mantra:9


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब अगले मन्त्र में इन्द्र शब्द से ईश्वर के गुणों का उपदेश किया है-

Word-Meaning: - हे (शतक्रतो) असंख्यात कामों को सिद्ध करनेवाले अनन्तविज्ञानयुक्त जगदीश्वर ! जिस (त्वा) आपकी (स्वाध्यः) अच्छे प्रकार ध्यान करनेवाले हम लोग (स्तवाम) नित्य स्तुति करें, (सः) सो आप (गोभिः) इन्द्रिय, पृथिवी, विद्या का प्रकाश और पशु तथा (अश्वैः) शीघ्र चलने और चलानेवाले अग्नि आदि पदार्थ वा घोड़े हाथी आदि से (नः) हमारी (कामम्) कामनाओं को (आपृण) सब ओर से पूरण कीजिये॥९॥
Connotation: - ईश्वर में यह सामर्थ्य सदैव रहता है कि पुरुषार्थी धर्मात्मा मनुष्यों का उन के कर्मों के अनुसार सब कामनाओं से पूरण करता है तथा जो संसार में परम उत्तम-उत्तम पदार्थों का उत्पादन तथा धारण करके सब प्राणियों को सुखयुक्त करता है, इससे सब मनुष्यों को उसी परमेश्वर की नित्य उपासना करनी चाहिये॥९॥ऋतुओं के सम्पादक जो कि सूर्य्य और वायु आदि पदार्थ हैं, उन के यथायोग्य प्रतिपादन से इस पन्द्रहवें सूक्त के अर्थ के साथ पूर्व सोलहवें सूक्त के अर्थ की सङ्गति समझनी चाहिये। इस सूक्त का भी अर्थ सायणाचार्य्य आदि तथा यूरोपदेशवासी अध्यापक विलसन आदि ने विपरीत वर्णन किया है॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथेन्द्रशब्देनेश्वरगुणा उपदिश्यन्ते।

Anvay:

हे शतक्रतो जगदीश्वर ! यं त्वा स्वाध्यो वयं त्वां स्तवामः स्तुवेम स त्वं गोभिरश्वैर्नोऽस्माकं काममापृण समन्तात्प्रपूरय॥९॥

Word-Meaning: - (सः) जगदीश्वरः (इमम्) वेदमन्त्रैः प्रेम्णा सत्यभावेनानुष्ठीयमानम् (नः) अस्माकम् (कामम्) काम्यत इष्यते सर्वैर्जनैस्तम् (आ) अभितः (पृण) पूरय (गोभिः) इन्द्रियपृथिवीविद्याप्रकाशपशुभिः (अश्वैः) आशुगमनहेतुभिरग्न्यादिभिस्तुरङ्गहस्त्यादिभिर्वा (शतक्रतो) शतमसंख्यातानि क्रतवः कर्माण्यनन्ता प्रज्ञा वा यस्य तत्सम्बुद्धौ सर्वकामप्रदेश्वर ! (स्तवाम) नित्यं स्तुवेम (त्वा) त्वाम् (स्वाध्यः) ये स्वाध्यायन्ति ते। अत्र स्वाङ् पूर्वाद् ध्यै चिन्तायाम् इत्यस्मात् ध्यायतेः सम्प्रसारणं च। (अष्टा०३.२.१७८) अनेन क्विप् सम्प्रसारणं च॥९॥
Connotation: - ईश्वरस्यैतत्सामर्थ्यं वर्त्तते यत् पुरुषार्थिनो धार्मिकाणां मनुष्याणां स्वस्वकर्मानुसारेण सर्वेषां कामानां पूर्तिं करोति। यः सृष्टौ परमोत्तमपदार्थोत्पादनधारणाभ्यां सर्वान् प्राणिनः सुखयति तस्मात्स एव सर्वैर्नित्यमुपासनीयो नेतरः॥९॥अस्य षोडशसूक्तार्थस्यर्त्तुसम्पादकानां सूर्य्यवाय्वादीनां यथायोग्यं प्रतिपादनात् पञ्चदशसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति बोध्यम्। इदमपि सूक्तं सायणाचार्य्यादिभिर्यूरोपदेशवासिभिरध्यापकविलसनादिभिश्च विपरीतार्थे व्याख्यातमिति॥९॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - ईश्वरात सदैव हे सामर्थ्य असते की पुरुषार्थी धर्मात्मा माणसांच्या कर्मानुसार सर्व कामना पूर्ण करणे व जगात अत्युत्तम पदार्थाचे उत्पादन करणे व धारण करणे आणि सर्व प्राण्यांना सुखी करणे इत्यादी. त्यामुळे सर्व माणसांनी त्याच परमेश्वराची उपासना नित्य केली पाहिजे. ॥ ९ ॥
Footnote: या सूक्ताचाही अर्थ सायणाचार्य इत्यादी तसेच युरोपदेशवासी अध्यापक विल्सन इत्यादींनी विपरीत लावलेला आहे.