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तद्राधो॑ अ॒द्य स॑वि॒तुर्वरे॑ण्यं व॒यं दे॒वस्य॑ प्रस॒वे म॑नामहे। अ॒स्मभ्यं॑ द्यावापृथिवी सुचे॒तुना॑ र॒यिं ध॑त्तं॒ वसु॑मन्तं शत॒ग्विन॑म् ॥

English Transliteration

tad rādho adya savitur vareṇyaṁ vayaṁ devasya prasave manāmahe | asmabhyaṁ dyāvāpṛthivī sucetunā rayiṁ dhattaṁ vasumantaṁ śatagvinam ||

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Pad Path

तत्। राधः॑। अ॒द्य। स॒वि॒तुः। वरे॑ण्यम्। व॒यम्। दे॒वस्य॑। प्र॒ऽस॒वे। म॒ना॒म॒हे॒। अ॒स्मभ्य॑म्। द्या॒वा॒पृ॒थि॒वी॒ इति॑। सु॒ऽचे॒तुना॑। र॒यिम्। ध॒त्त॒म्। वसु॑ऽमन्तम्। श॒त॒ऽग्विन॑म् ॥ १.१५९.५

Rigveda » Mandal:1» Sukta:159» Mantra:5 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:2» Mantra:5 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:5


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - हे अध्यापक और उपदेशको ! (वयम्) हम लोग (अद्य) आज (सवितुः) जगत् के उत्पन्न करने (देवस्य) और प्रकाश करनेवाले ईश्वर के (प्रसवे) उत्पन्न किये हुए इस जगत् में जिस (वरेण्यम्) स्वीकार करने योग्य (राधः) द्रव्य को (मनामहे) जानते हैं (तत्) उस (शतग्विनम्) सैकड़ों गौओंवाले (वसुमन्तम्) नाना प्रकार के धनों से युक्त (रयिम्) धन को (सुचेतुना) सुन्दर ज्ञान से (अस्मभ्यम्) हम लोगों के लिये (द्यावापृथिवी) भूमिमण्डल और सूर्यमण्डल के समान तुम (धत्तम्) धारण करो ॥ ५ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। विद्वान् जन जैसे द्यावापृथिवी सब प्राणियों को सुखी करते हैं, वैसे सबको विद्या और धन की उन्नति से सुखी करें ॥ ५ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

हे अध्यापकोपदेशकौ वयमद्य सवितुर्देवस्य प्रसवे यद्वरेण्यं राधो मनामहे तच्छतग्विनं वसुमन्तं रियं सुचेतुनाऽस्मभ्यं द्यावापृथिवी इव युवां धत्तम् ॥ ५ ॥

Word-Meaning: - (तत्) (राधः) द्रव्यम् (अद्य) इदानीम् (सवितुः) जगदुत्पादकस्य (वरेण्यम्) वर्त्तुमर्हम् (वयम्) (देवस्य) द्योतकस्य (प्रसवे) प्रसूतेऽस्मिञ्जगति (मनामहे) विजानीमः (अस्मभ्यम्) (द्यावापृथिवी) भूमिसूर्यौ (सुचेतुना) सुष्ठु संज्ञानेन (रयिम्) श्रियम् (धत्तम्) (वसुमन्तम्) बहुधनयुक्तम् (शतग्विनम्) शतानि गावो विद्यन्ते यस्मिँस्तम् ॥ ५ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। विद्वांसो यथा द्यावापृथिव्यौ सर्वान् प्राणिनः सुखयतः तथा सर्वान् विद्याधनोन्नत्या सुखयन्तु ॥ ५ ॥अस्मिन् सूक्ते विद्युद्भूमिवद्विद्वद्गुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥इति एकोनषष्ठ्युत्तरं शततमं सूक्तं द्वितीयो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्वान लोक जसे द्यावापृथ्वी वरील सर्व प्राण्यांना सुखी करतात तसे सर्वांच्या विद्या व धनाची वृद्धी करून सुखी करावे. ॥ ५ ॥