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दी॒र्घत॑मा मामते॒यो जु॑जु॒र्वान्द॑श॒मे यु॒गे। अ॒पामर्थं॑ य॒तीनां॑ ब्र॒ह्मा भ॑वति॒ सार॑थिः ॥

English Transliteration

dīrghatamā māmateyo jujurvān daśame yuge | apām arthaṁ yatīnām brahmā bhavati sārathiḥ ||

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Pad Path

दी॒र्घऽत॑माः। मा॒म॒ते॒यः। जु॒जु॒र्वान्। द॒श॒मे। यु॒गे। अ॒पाम्। अर्थ॑म्। य॒तीना॑म्। ब्र॒ह्मा। भ॒व॒ति॒। सार॑थिः ॥ १.१५८.६

Rigveda » Mandal:1» Sukta:158» Mantra:6 | Ashtak:2» Adhyay:3» Varga:1» Mantra:6 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:6


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - जो (दीर्घतमाः) जिससे दीर्घ अन्धकार प्रकट होता वह (मामतेयः) ममता में कुशल जन (दशमे) दशमे (युगे) वर्ष में (जुजुर्वान्) रोगी हो जाता है जो (सारथिः) रथ हाँकनेवाले जन के समान (अपाम्) विद्या, विज्ञान और योगशास्त्र में व्याप्त (यतीनाम्) संन्यासियों के (अर्थम्) प्रयोजन को प्राप्त होता वह (ब्रह्मा) सकल वेदविद्या का जाननेवाला (भवति) होता है ॥ ६ ॥
Connotation: - जो इस संसार में अत्यन्त अविद्या अज्ञानयुक्त, लोभातुर हैं वे शीघ्र रोगी होते और जो पक्षपातरहित संन्यासियों के सकाश से हर्ष-शोक तथा निन्दा-स्तुति रहित, विज्ञान और आनन्द को प्राप्त होते हैं, वे आप दुःख के पारगामी होकर औरों को भी उसके पार करते हैं ॥ ६ ॥इस सूक्त में शिष्य और शिक्षा देनेवाले के काम का वर्णन होने से इस सूक्त के अर्थ की पिछले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥यह एकसौ अट्ठावनवाँ सूक्त और प्रथम वर्ग समाप्त हुआ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

यो दीर्घतमा मामतेयो दशमे युगे जुजुर्वान् जायते। यश्च सारथिरिवाऽपां यतीनामर्थमाप्नोति स ब्रह्मा भवति ॥ ६ ॥

Word-Meaning: - (दीर्घतमाः) दीर्घं तमो यस्मात् सः (मामतेयः) ममतायां कुशलः (जुजुर्वान्) रोगापन्नः (दशमे) दशानां पूर्णे (युगे) वर्षे (अपाम्) विद्याविज्ञानयोगव्यापिनाम् (अर्थम्) प्रयोजनम् (यतीनाम्) संन्यासिनाम् (ब्रह्मा) सकलवेदवित् (भवति) (सारथिः) रथप्राजकः ॥ ६ ॥
Connotation: - येऽत्रात्यन्ताविद्यायुक्ता लोभातुरास्सन्ति ते सद्यो रुग्णा जायन्ते। ये पक्षपातरहितानां संन्यासिनां हर्षशोकनिन्दास्तुतिरहितं विज्ञानाऽऽनन्दमाप्नुवन्ति ते स्वयं दुःखपारगा भूत्वाऽन्यानपि दुःखसागरात् पारं नयन्ति ॥ ६ ॥।अस्मिन् सूक्ते शिष्यशासककर्मवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्विज्ञेया  ॥इति अष्टपञ्चाशदुत्तरं शततमं सूक्तं प्रथमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - जे या जगात अत्यंत अविद्यायुक्त, अज्ञानयुक्त लोभातुर असतात, ते तात्काळ रोगी होतात व जे भेदभावरहित संन्याशाच्या सान्निध्याने हर्ष, शोक व निन्दास्तुतिरहित विज्ञान व आनंद प्राप्त करतात ते स्वतः दुःखाच्या पलीकडे जातात व इतरांनाही पार करवितात. ॥ ६ ॥