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अबो॑ध्य॒ग्निर्ज्म उदे॑ति॒ सूर्यो॒ व्यु१॒॑षाश्च॒न्द्रा म॒ह्या॑वो अ॒र्चिषा॑। आयु॑क्षाताम॒श्विना॒ यात॑वे॒ रथं॒ प्रासा॑वीद्दे॒वः स॑वि॒ता जग॒त्पृथ॑क् ॥

English Transliteration

abodhy agnir jma ud eti sūryo vy uṣāś candrā mahy āvo arciṣā | āyukṣātām aśvinā yātave ratham prāsāvīd devaḥ savitā jagat pṛthak ||

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Pad Path

अबो॑धि। अ॒ग्निः। ज्मः। उत्। ए॒ति॒। सूर्यः॑। वि। उ॒षाः। च॒न्द्रा। म॒ही। आ॒वः॒। अ॒र्चिषा॑। अयु॑क्षाताम्। अ॒श्विना॑। यात॑वे। रथ॑म्। प्र। अ॒सा॒वी॒त्। दे॒वः। स॒वि॒ता। जग॑त्। पृथ॑क् ॥ १.१५७.१

Rigveda » Mandal:1» Sukta:157» Mantra:1 | Ashtak:2» Adhyay:2» Varga:27» Mantra:1 | Mandal:1» Anuvak:22» Mantra:1


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अब छः ऋचावाले एकसौ सत्तावनवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र से ही अश्वि के गुणों को कहते हैं ।

Word-Meaning: - जैसे (अग्निः) विद्युदादि अग्नि (अबोधि) जाना जाता है, (ज्मः) पृथिवी से अलग (सूर्यः) सूर्य (उदेति) उदय होता है (मही) बड़ी (चन्द्रा) आनन्द देनेवाली (उषाः) प्रभात वेला (व्यावः) फैलती उजेली देती है वा (सविता) ऐश्वर्य करनेवाला (देवः) दिव्यगुणी सूर्यमण्डल (अर्चिषा) अपने किरण समूह से (जगत्) मनुष्यादि प्राणिमात्र जगत् को (पृथक्) अलग (प्रासावीत्) अच्छे प्रकार प्रेरणा देता है वैसे (अश्विना) अध्यापक और उपदेशक विद्वान् (यातवे) जाने के लिये (रथम्) विमानादि यान को (अयुक्षाताम्) युक्त करते हैं ॥ १ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे बिजुली, सूर्य और प्रभातवेला अपने प्रकाश से आप प्रकाशित हो समस्त जगत् को प्रकाशित कर ऐश्वर्य की प्राप्ति कराते हैं, वैसे ही अध्यापक और उपदेशक लोग पदार्थ तथा ईश्वरसम्बन्धी विद्याओं को प्रकाशित कर समस्त ऐश्वर्य की उत्पत्ति करावें ॥ १ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथाश्विगुणानाह ।

Anvay:

यथाऽग्निरबोधि ज्मः सूर्य्य उदेति मही चन्द्रोषा व्यावः सविता देवो वार्चिषा जगत् पृथक् प्रासावीत् तथाऽश्विना यातवे रथमयुक्षाताम् ॥ १ ॥

Word-Meaning: - (अबोधि) बुध्यते विज्ञायते (अग्निः) विद्युदादिः (ज्मः) पृथिव्याः (उत्) (एति) उदयं प्राप्नोति (सूर्यः) (वि) (उषाः) प्रभातः (चन्द्रा) आह्लादप्रदा (मही) महती (आवः) अवति (अर्चिषा) (अयुक्षाताम्) अयोजयताम्-युङ्तः (अश्विना) विद्वांसावाप्ताऽध्यापकोपदेशकौ (यातवे) यातुं गन्तुम् (रथम्) विमानादियानम् (प्र) (असावीत्) प्रसुवति (देवः) दिव्यगुणः (सविता) ऐश्वर्यकारकः (जगत्) (पृथक्) ॥ १ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा विद्युत्सूर्योषसः स्वप्रकाशेन स्वयं प्रकाशिता भूत्वा सर्वं जगत् प्रकाश्यैश्वर्यं प्रापयन्ति तथैवाऽध्यापकोपदेशकाः पदार्थेश्वरविद्याः प्रकाश्याऽखिलमैश्वर्य्यं जनयेयुः ॥ १ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

या सूक्तात अश्वीच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणली पाहिजे. ॥

Word-Meaning: - N/A
Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्युत, सूर्य व उषा स्वतः प्रकाशित होऊन संपूर्ण जगाला प्रकाशित करतात व ऐश्वर्यवान करतात तसेच अध्यापक व उपदेशकांनी पदार्थ व ईश्वरासंबंधी विद्या प्रकट करून संपूर्ण ऐश्वर्य निर्माण करावे. ॥ १ ॥